खंडवा।देश में किसानों के नाम पर करोड़ों रुपए की योजनाएं चलाई जा रही हैं. लेकिन यह जगजाहिर है कि किसान इन योजनाओं से कम ही लाभांवित हो पाते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में प्रचंड जीत के बाद किसानों के कल्याण के लिए तमाम वादे किए थे. इन वादों में साल 2015 में पीएम मोदी ने लोकसभा में देश के अन्नदाता के लिए सॉइल हेल्थ कार्ड यानी उसकी जमीन का स्वास्थ्य कार्ड देने की बात कही थी. इस बात को आज 5 साल का समय पूरा हो चुका है.
सालों पहले बनकर तैयार हुई मृदा परीक्षण प्रयोगशाल नहीं हो पाई है शुरू वहीं मध्यप्रदेश सरकार ने भी किसानों की मृदा परीक्षण के लिए हर जिले के प्रत्येक ब्लॉक में मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं का निर्माण कराया था, लेकिन यह योजना कितनी काम कर रही है यह जानना बेहद जरुरी है. खंडवा जिले में छह प्रयोगशालाएं तैयार हैं. लेकिन हकीकत तो यह है कि वर्तमान में ये प्रयोगशालाएं जर्जर अवस्था में बंद पड़ी है. वहीं अभी तक इनका संचालन शुरु ही नहीं हो पाया है.
प्रशासन की उदासीनता से अधर में योजना
खंडवा जिले में मंडी बोर्ड के माध्यम से सभी 6 विकासखंडों में मृदा परीक्षण प्रयोगशाला बनाई गई हैं. लेकिन प्रशासन की उदासीनता के चलते कई साल बीत जाने के बाद भी शासन इस ओर कदम बढ़ाने के लिए तैयार दिखाई नहीं दे रहा है. लालफीताशाही के चलते जनहित की योजना भी अधर में लटक जाती हैं. इसकी एक बानगी जिले में देखी जा सकती हैं. खंडवा के छैगांवमाखन, पंधाना, खालवा, हरसूद, पुनासा और बलड़ी विकासखंडों में यह प्रयोगशाला बनकर तैयार हो गई हैं. लेकिन शुरु नहीं हो पाई है.
खंडवा में 40 लाख की लागत से बनी है प्रयोगशाला
जानकारी के मुताबिक हर प्रयोगशाला की लागत 40 लाख रूपए है. जबकि चार से पांच साल पहले ही यह बनकर तैयार हो चुकी हैं. मंडी बोर्ड ने इन्हें कृषि विभाग को हैंडओवर कर दिया है. किसानों का कहना है कि किसानों के लिए जो काम शुरू किया था वो अधर में लटका हुआ है. लाखों करोड़ों रूपए की लागत से बने यह भवन आज जर्जर हो रहे हैं. यहां किसानों को उनकी भूमि के स्वास्थ्य परीक्षण कराना था. लेकिन अभी तक यह भवन खुले तक नहीं हैं.
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प्रयोगशाला बनकर तैयार, लेकिन काम शुरु नहीं
छैगांव माखन के किसान अशोक महाजन ने बताया कि शासन ने बेहतर मंशा से किसानों के लिए मृदा परीक्षण प्रयोगशाला बनवाई है. जिनमें किसानों की भूमि का स्वास्थ्य का परीक्षण हो सकता था. किसान देख रहे हैं कि सालों से ये इमारत बनकर तैयार हैं. लेकिन इन इमारत में मृदा परीक्षण प्रयोगशाला का काम शुरु नहीं हुआ है. इसके शुरु हो जाने से किसान को उनकी भूमि के स्वास्थ्य के बारे में पता चल सकेगा. उसमें मौजूद प्राकृतिक उर्वरक शक्ति, पोषक तत्वों और धातुओं की जानकारी पता चल सकेगी. किसी पोषक तत्व की कमी होने से उसकी भरपाई किसान कृषि विशेषज्ञों की सलाह से कर सकता है.
जल्द ही की जाएगी प्रयोगशाला में नियुक्तियां
किसानों ने शासन से यह मांग की है कि जल्द इन प्रयोगशालाओं को शुरू किया जाए. ताकि इस योजना का असल मकसद पूरा हो सके. इसके साथ ही किसानों को भी इसका फायदा मिल सके. इस मामले पर कृषि विभाग के उपसंचालक आर.एस. गुप्ता ने कहा कि खंडवा जिले में 6 विकासखंडों में मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं बनी हैं. जो अलग-अलग समय पर बनकर तैयार हुई हैं. इनका निर्माण कार्य मंडी बोर्ड के द्वारा किया गया है. इन्हें लगभग डेढ़ से 2 साल पूर्व ही इन्हें कृषि विभाग को हैंडओवर किया जा चुका है. वर्तमान समय में यह बंद है और इनका संचालन शुरू नहीं हो पाया है. शासन के द्वारा आगामी समय में इन प्रयोगशालाओं में स्टाफ की नियुक्ति की जाएगी. जिसके बाद इसका संचालन शुरू किया जाएगा.
मृदा में होते हैं कई पोषक तत्व
कृषि विभाग के उप संचालक आरएस गुप्ता ने बताया कि मिट्टी में पोषक तत्वों का भंडार होता है. इसके साथ ही मृदा पौधों को सीधा खड़ा रहने के लिए सहारा देती हैं. पौधों को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए 16 पोषक तत्व की आवश्यकता होती है. इनमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम और मैग्नीशियम. सूक्ष्म तत्व जस्ता, मैग्नीज, तांबा, लोहा, बोरान, मोलेबडेनिम और क्लोरीन इन सभी तत्वों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करने से ही उपयुक्त पैदावार ली जा सकती है.
मृदा परीक्षण का उद्देश्य
मृदा परीक्षण या भूमि की जांच एक मृदा के किसी नमूने की रासायनिक जांच होती है. जिसके तहत भूमि में उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्रा के बारे में जानकारी मिलती है. इस परीक्षण का उद्देश्य भूमि की उर्वरता मापना या यह पता करना है कि भूमि में कौन से तत्व की कमी है. खंडवा जिले के लाखों किसानों को सॉइल हेल्थ मिलने से उनकी कृषि भूमि की बारीक जानकारी मिल सकेगी. उनकी भूमि में कौन से तत्त्वों की कमी हैं और उनकी भूमि में कौन सी फसल उपयुक्त हो सकती हैं. कौन सी फसल उन्हें भरपूर मुनाफ़ा दे सकती हैं. प्रशासन की लापरवाही के चलते अच्छी भली योजनाओं पर पानी फेर रहा है. नेताओं और अधिकारियों की उदासीनता के कारण किसान आधुनिकता की ओर नहीं बढ़ पा रहा है.