खंडवा। वक्त कोई भी रहा हो गीत-संगीत की दुनिया में मध्यप्रदेश का दबदबा हमेशा रहा है. मध्यप्रदेश से ताल्लुक रखने वाले तानसेन की आवाज का जादू जहां इतिहास में दर्ज हो चुका है तो वहीं एक आवाज ऐसी भी है जिसकी यादें आज भी करोड़ों दिलों की धड़कन बनी हुई हैं. ये मस्ती भरी आवाज है खंडवा के बेटे किशोर कुमार की, जिन्हें आज किशोर दा कहा जाता है.
किशोर कुमार ने जिस दौर में फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा, उस दौर में यहां दर्द भरे नगमों की बहार हुआ करती थी, लेकिन ये किशोर कुमार की मस्ती भरी आवाज का ही जादू था कि जब उन्होंने एक लड़की भीगी भागी सी गुनगुनाया, तो लाखों लोग उनकी सुर लहरियों पर झूमने को मजबूर हो गए. सुर-सम्राट किशोर कुमार न सिर्फ एक बेहतरीन सिंगर थे, बल्कि लाजवाब एक्टर, कम्पोजर और राइटर भी थे.
70 के दशक में जब खंडवा के आभास कुमार गांगुली ने अपनी मतवाली आवाज में यूडलिंग की तो न जाने कितने लोग बहकने लगे और यहीं से खंडवा का आभास कुमार गांगुली बन गया किशोर दा. जिस शख्स ने कभी मौसिकी की माकूल तालीम नहीं ली, उसने जब अपने बेफिक्र अंदाज को सुरों में सजाना शुरू किया तो उसकी अपनी ही नहीं, दूसरों की भी ज़िंदगी का सफ़र सुहाना होता चला गया.
मुंबई में मुकाम हासिल करने के बाद भी किशोर कभी खंडवा को नहीं भूल पाए. वे हमेशा मुंबई छोड़कर खंडवा रहने की बात करते थे. अपने शोज़ की शुरूआत में वे दर्शकों को खंडवे वाले किशोर कुमार की राम-राम कहना नहीं भूलते थे. शायद एक माशुका की तरह खंडवा से उनकी यही मोहब्बत, गीत बनकर उनके शब्दों में उतर आई और वे गुनगुनाने लगे पल-पल दिल के पास तुम रहती हो.
किशोर कुमार जितनी खूबसूरत आवाज के मालिक थे, उनकी असल जिंदगी उतनी खूबसूरत नहीं रही. बेफिक्री को हर पल जीने वाले किशोर कुमार को मोहब्बत में बहुत दर्द मिला, इसी दर्द में किशोर दा ने महबूब की गलियों में ही मोहब्बत को रुसवा कर दिया. मोहब्बत के दर्द में गाया उनका ये गीत हर आशिक के दर्द की आवाज बन गया. लाखों-करोड़ों लोगों को सुरों के सागर में तैराने वाले किशोर कुमार ऐसे मांझी थे, जो अपने किनारे यानी खंडवा से दूर नहीं होना चाहते थे, लेकिन किनारे की ये अधूरी तलाश जब उनकी जुबां पर आई तो जिंदगी की दौड़ में घरों से दूर हो चुका हर शख्स किशोर दा के सुर में सुर मिलाकर कहने लगा मांझी रे अपना किनारा है नदिया की धारा.