खंडवा।जिला जेल का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. यहां स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन की आहुति देने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी (mp freedom fighters names) तो रहे ही हैं, साथ ही भारत के 'राबिनहुड' कहे जाने वाले जननायक टंट्या मामा की यादों से भी भरी पड़ी हैं. जिसके चलते आज जेल का नाम शहीद जननायक टंट्या भील जिला जेल है. इस जेल में दो बार टंट्या मामा को रखा गया था. इसमें से एक बार टंट्या मामा जेल की 15 से अधिक फीट उंची दिवारें तक फांद गए थे. उन्हे जिस बैरक में रखा गया था आज भी वहां उनकी तस्वरी लगी हुई है.
खंडवा जेल में दो बार हुए थे बंदी
आदिवासी योद्धा भारत के 'राबिनहुड' कहे जाने वाले टंट्या मामा (tantya mama) को खंडवा जेल में दो बार बंदी बनाकर कर रखा था. बताया जाता है कि भारत के 'राबिनहुड शहीद जननायक टंट्या भील (मामा) ने सन् 1858 में जब भारत का शासन ब्रिटिश के अधीन आ गया था. तब अंग्रेजों के विरुद्ध बिगूल बजा दिया था. ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर मालगुजार और साहूकारों ने भी जनसाधारण का विभिन्न प्रकार से शोषण करना शुरू किया. इस दौरान टंट्या मामा ने वनवासियों और पीड़ितों को एकत्रित कर अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम छेड़ दिया था.
जेल की दिवार फांद गए थे टंट्या मामा
अंग्रेजों ने 20 नवंबर 1878 को उन्हें धोखे से पकड़कर खंडवा जेल में डाल दिया गया. जेल की दिवारें उन्हे अधिक समय तक कैद नहीं कर पाई. 24 नवंबर 1818 को रात में टंट्या मामा जेल की दीवार फांदकर गए थे. जेल से भागने के बाद उन्होंने संगठन को मजबूत करने के लिए बिजानिया भील, दौलिया, मोडिया और हिरिया जैसे साथी मिले और उन्हीं के साथ टंट्या मामा ने अंग्रेजों को सबक सिखाना शुरू कर दिया. ब्रिटिश सरकार से 24 बार संघर्ष किया और विजयी रहे. इसके साथ ही ब्रिटिश सरकार के खजाने और जमीदारों तथा माल गुजारों को लूटकर धन निर्धन और असहायक लोगों में बांट दिया. गरिबाें के लिए वे भगवान के साथ ही एक जननायक बन गए थे.