कटनी। जिले के 2 ऐसे ईलाके हैं जहां के सैकड़ों परिवार पान की खेती पर हीं निर्भर हैं. खास बात ये कि इनमें से एक ईलाका पान के नाम से हीं मशहूर है. नाम है पान उमरिया. यहां रहने वाले ज्यादातर किसान पान के पुस्तैनी कारोबार से जुड़े हुए हैं. पीढ़ी दर पीढी पान के कारोबार से हीं इनका गुजर बसर होता आया है. लेकिन लॉक डाउन के बाद इनका कारोबार पूरी तरह चौपट हो गया है.
पान की डिमांड कम:किसानों के मुताबिक एक ऐसा भी दौर था जब उनका पान मध्य प्रदेश के कई जिलों के साथ कई प्रदेशों में बिका करता था, लेकिन लॉक डाउन ने उनके व्यापार को हीं डाउन कर दिया है. किसानों के मुताबिक जब लॉक डाउन में बाजार बंद हुआ तो लोगों ने पान के विकल्प के तौर पर गुटका और पाउच खाना शुरू कर दिया जो उन्हें आसानी से मिल जाता था. जब बाजार खुला तब तक लोगों को गुटका पाउच खाने की लत लग गई थी जिसके चलते पान की डिमांड कम हो गई. पान उगाने वाले किसानों के मुताबिक इन्सटैन्ट पान मसालों के चलते अब लोग पान खाना कम कर दिए हैं जिसके चलते उनके कारोबार की कमर टूट गई है. तो सरकारी योजनाओं का लाभ भी इन किसानों को नही मिलता है और पान की खेती को भी खेती माना जाए और कृषि में जोड़ा जाए जिस से लाभ हो सके अभी हालात इतने बदत्तर हैं कि मुनाफ़े के जगह लागत खर्च भी नही निकल पा रहा है.
किसानों को भारी नुकसान:मामला बस इतना हीं नही है कि पान की बिक्री में कमी आने से हीं किसानों की कमर टूटी है. किसानों के मुताबिक सरकार की नितियों के चलते भी उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. इनके मुताबिक सरकार ऐसे दूसरी फ़सलों के खराब होने पर बीमा के पैसे देती है अगर उन्हें भी इसका लाभ मिलता तो थोड़ी राहत जरूर मिल जाती. पान की खेती करने वालों ने बताया की कटनी में बांग्ला पान उगाते है. सभी के यहां पर इसी वैरायटी का पान होता है इन पानो को मौसम की मार से बचना भी उनके बड़ी चुनौती होती है उपर से खेती के लिए पान का बरेजा बनाना भी बेहद मंहंगा हो गया है. किसान बताते हैं कि कुछ साल पहले तक सरकार उन्हें बांस उपलब्ध कराती थी जिससे उन्हें बहुत राहत मिल जाती थी लेकिन अब उन्हें मन माने दाम पर बांस खरीदना पड़ रहा है जिससे पान की खेती मंहंगी होती जा रही है.
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गुटखा के कारण पान में कमी:पान दुकान संचालकों का यही कहना है कि, लॉक डाउन के समय पान नही मिलता था. लोग और खास कर युवा वर्ग गुटखा पाउच खाते थे तब से पान की बिक्री काफी कम हो गई है. इधर सरकारी अधिकारी योजनाओं में पेचीदगी का हवाला देकर पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं. परियोजना उद्यांकी अधिकारी के मुताबिक जिस तरह की मांग किसानों की है उसे सरकार के नियमों के मुताबिक पूरा नही किया जा सकता है. किसानों को शासन की योजनाओं लेने के लिए पारंपरिक योजनाओं को छोड़ना पड़ेगा और आधुनिक खेती करना पड़ेगी.