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Janmashtami 2020: लघु वृंदावन जहां तीन दिनों तक सुनी गई थी मुरली की तान

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Published : Aug 12, 2020, 10:08 PM IST

Updated : Aug 13, 2020, 5:31 PM IST

कटनी में 100 वर्ष पुराने मंदिर की नींव से लेकर गुंबद तक के निर्माण में 15000 और 11 साल तक मालगुजारी में मिलने वाले अनाज का खर्चा आया था. बुजुर्ग बताते हैं कि मंदिर के निर्माण के 2 वर्ष बाद 7 दिनों तक जिले में लगातार बारिश का दौर चला था और उस दौरान कान्हा की मुरली की तान लोगों को तीन दिन तक सुनने को मिली थी.

Small Vrindavan Temple
लघु वृंदावन मंदिर

कटनी। शानदार नक्काशी और पुरातत्व कलाकृति का नमूना जिले के रैणी तहसील का बांधा इमलाज राधा कृष्ण मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है. इस साल कोरोना संक्रमण के चलते मंदिर में न के बराबर भीड़ है. मंदिर में कोरोना वायरस की गाइडलाइन को ध्यान में रखकर भगवान की आराधना की जा रही है. लगभग 100 वर्ष पुराने मंदिर की नींव से लेकर गुंबद तक के निर्माण में 15000 और 11 साल तक मालगुजारी में मिलने वाले अनाज का खर्चा आया था. बुजुर्ग बताते हैं कि मंदिर के निर्माण के 2 वर्ष बाद 7 दिनों तक जिले में लगातार बारिश का दौर चला था और उस दौरान कान्हा की मुरली की तान लोगों को तीन दिन तक सुनने को मिली थी. तभी से चमत्कारी मंदिर क्षेत्र को लघु वृंदावन के नाम से पुकारते हैं. बताते हैं कि गांव में मालगुजार पंडित गोरेलाल पाठक ने मंदिर की आधारशिला रखी थी, लेकिन उनकी मौत हो गई, जिसके बाद उनकी पत्नी भगौदा देवी ने उनके संकल्प को आगे बढ़ाकर मंदिर का काम शुरू करवाया.

कटनी का राधा कृष्ण मंदिर

मंदिर समिति के सदस्यों के मुताबिक भगवान श्री कृष्ण को पुत्र व राधा रानी को पुत्रवधू मानती थी. जिसके चलते वर्ष 1915 में मंदिर का निर्माण प्रारंभ कराया गया, जो नववर्ष बाद 1924 में पूर्ण हुआ. 2 वर्ष बाद 1926 में मंदिर में प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा कराई गई. पाठक ने बताया कि मंदिर के निर्माण और उसके साथ मालगुजार को गांव से मालगुजारी के रूप में मिलने वाला 11 साल का अनाज लगा था. बताया जाता है कि स्थापना के 2 वर्ष बाद 1928 के भादो के माह में 7 दिन तक लगातार बारिश हुई और उस दौरान लोगों को तीन दिन व तीन रात बांसुरी की धुन सुनाई दी थी.

मंदिर में सालभर पर्व के समय विधि विधान से आयोजन होते जा रहे हैं, तो जन्माष्टमी पर्व पर सैकड़ों श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता था. लेकिन इस साल गांव के ही लोग भगवान की पूजा में जुड़े रहे. गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि मंदिर के निर्माण में लगाए गए पत्थरों की नक्काशी और उन्हें आकर्षक देने का कार्य बिलहरी के कलाकार बादल खान ने की थी. जिनकी कला को आज भी लोग सराहते हैं. इसके अलावा उनका सहयोग बिलहरी के सरजू बर्मन व भिम्मे नाम के कारीगरों ने किया था. बुजुर्गों ने बताया कि मंदिर में लगा पूरा पत्थर सादा गांव से आया था और एक ही बैलगाड़ी से उनको ढोया गया. यह भी बताया जा रहा है कि मंदिर निर्माण कार्य पूरा होते ही बैलगाड़ी में जोते जाने वाले भैसों ने मंदिर की सीढ़ियों पर ही दम तोड़ दिया था.

Last Updated : Aug 13, 2020, 5:31 PM IST

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