झाबुआ। कोरोना वायरस की चेन तोड़ने के लिए किए गए लॉकडाउन में गरीबों को राहत पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार ने जनधन खातों में तीन महीनों तक हर महीने पांच सौ रुपए जमा कराने की घोषणा की थी. इस राशि को निकालने के लिए ग्रामीण अंचल की महिलाएं महीने भर से बैंक और कियोस्क सेंटरों के चक्कर काट रही हैं. जन धन खातों में आने वाली राहत राशि की जमीनी हकीकत ईटीवी भारत ने अपने कैमरे में कैद की, जिसमें कई चौंकाने वाले खुलासे हुए.
500 रुपए के लिए घंटों लाइन में ग्रामीण प्रशासन के दावे खोखले
जिला प्रशासन बाजारों में आने वाली भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को प्रभावी ढंग से लागू करने के दावे जरूर करता है, पर जमीनी हकीकत कुछ और ही है. कोरोना संक्रमण से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग ही एकमात्र कारगर उपाय है. पर जिले में गांव से लेकर शहर तक सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. पांच सौ रुपए निकालने की कतार में सोशल डिस्टेंसिंग मुसीबत का सबब बन रहा है. पैसा निकालने के लिए बैंकों और कियोस्क सेंटरों के बाहर सुबह से लेकर शाम तक ग्रामीणों जमा रहते हैं. पैसे निकालने आने वाले ग्रामीणों के लिए न तो पीने के पानी की व्यवस्था होती है और न ही बैठने की व्यवस्था. इन स्थानों पर सरकार ने सैनिटाइजर और हाथ धोने के लिए पानी और साबुन की व्यवस्था के निर्देश दिए हैं.
500 रुपए निकालने के लिए घंटों इंतजार कर रहे ग्रामीण
शहर में उमड़ने वाली ग्रामीणों की भीड़ पुलिस की निगाहों में आ जाती है और पुलिस इन पर सख्ती बरतती है. ऐसे में उन ग्रामीणों का क्या दोष, जो सुबह 5 बजे से कतारबद्ध होकर पैसे निकालने के लिए घंटों केंद्रों के बाहर इंतजार करते हैं. पर्याप्त व्यवस्था न होने के चलते ग्रामीणों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. एक ओर इन ग्रामीणों को न तो समय पर पैसे मिल रहे और न ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर पा रहे हैं. जिससे आर्थिक तंगी के साथ ही कोरोना संक्रमण फैलने का डर भी बना हुआ है.