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बीजेपी सांसद गुमान सिंह ने पीएम मोदी को लिखा पत्र, 'भीली बोली' को पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग

बीजेपी सांसद गुमान सिंह डामोर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर भीली बोली को भाषा के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग की है.

MP Guman Singh Damore
सांसद गुमान सिंह डामोर

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Published : Nov 5, 2020, 1:26 PM IST

Updated : Nov 5, 2020, 2:08 PM IST

झाबुआ। आगामी शैक्षणिक सत्र मेंकेंद्र सरकार नई शिक्षा नीति लागू करने वाली है. नई शिक्षा नीति में स्थानियों बोलियों को भी शामिल किया गया है. ऐसे में अब प्रदेश के आदिवासी बोली 'भीली' को भी शिक्षा नीति में शामिल करने की मांग उठाई जा रही है. रतलाम- झाबुआ लोकसभा सांसद गुमान सिंह डामोर ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस संबंध में पत्र लिखा है. इस पत्र के जरिए उन्होंने भीली बोली को भाषा के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल करने की अपील की है.

सांसद गुमान सिंह डामोर

जिले में 80 फीसदी भील जनजाति

रतलाम, झाबुआ, अलीराजपुर जिलों सहित गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कई इलाकों में बड़ी संख्या में आदिवासी निवास करते हैं. आदिवासी बहुल झाबुआ और अलीराजपुर जिले में 80 फीसदी से ज्यादा आदिवासी रहते हैं, जो स्थानीय स्तर पर भी भीली बोली बोलते हैं. ऐसे में सांसद गुमान सिंह डामोर ने मांग की है कि, नई शिक्षा नीति में भीली बोली को शामिल किया जाए, ताकि आदिवासी बच्चों को प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा में सबसे ज्यादा फायदा मिले.

आदिवासी बच्चों को लाभ मिलेगा

केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति के तहत पहली से पांचवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में स्थानीय भाषा को महत्व दिया जाएगा. लिहाजा सांसद ने ये मांग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय शिक्षा मंत्री से की है. सांसद का कहना है कि, शिक्षा में भाषा का काफी महत्व होता है और इसका मनोवैज्ञानिक असर भी बच्चों की पढ़ाई पर पढ़ता है. अगर स्थानीय बोली को भाषा के रूप में सम्मिलित कर उसे पाठ्यक्रम में शामिल किया जाता है, तो आदिवासी वर्ग के बच्चों को लाभ मिलेगा.

देश की प्रभावशील जनजाति

भारत में भीलों की आबादी करीब 1.6 करोड़ है, जिनमें से मध्य प्रदेश में करीब 60 लाख की आबादी है. यह देश में प्रभावशाली जनजाति है. 2020 में MPPSC की परीक्षा में भील जनजाति को लेकर किए गए ए‍क सवाल पर बवाल मच गया था. MPPSC की परीक्षा में भील जनजाति को लेकर एक गद्यांश दिया गया था. इसके आधार पर कई सवाल पूछे गए थे. गद्यांश के आधार पर प्रश्न पूछा गया और बताया गया कि, 'भील जनजाति शराब के अथाह सागर में डूबती जा रही है. समाज के लोग गैर वैधानिक और अनैतिक कामों में संलिप्त हो जाते हैं. भीलों की आपराधिक प्रवृत्ति का कारण देनदारियों को पूरा न करना है. भील की आर्थिक विपन्नता का कारण आय से अधिक खर्च करना है'.

इस मामले में मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की तत्कालिन सचिव रेणु पंत और आयोग के अध्यक्ष का काफी विरोध भी हुआ था और FIR दर्ज कारने कि मांग उठने लगी थी, जिसके बाद राज्य सरकार ने रेणु पंत को सचिव पद से हटा दिया.

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नई शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा

नई शिक्षा नीति के तहत स्कूली शिक्षा से उच्च शिक्षा तक भारतीय भाषाओं को शामिल किया गया है. नई शिक्षा नीति में स्कूली शिक्षा में अब त्रिभाषा फॉर्मूला चलेगा. इसमें संस्कृत के साथ तीन अन्य भारतीय भाषाओं का विकल्प होगा. इलेक्टिव में ही विदेशी भाषा चुनने की भी आजादी होगी. सरकार ने पाँचवी क्लास तक मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने की योजना बनाई है. इसे कक्षा 8वीं या उससे आगे भी बढ़ाया जा सकता है. विदेशी भाषाओं की पढ़ाई सेकंडरी लेवल से होगी. नीति में अलग-अलग भाषाओं पर ही जोर दिया गया है. हालांकि, नई शिक्षा नीति में ये भी कहा गया है कि, किसी पर कोई भी भाषा थोपी नहीं जाएगी.

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मातृभाषा या स्थानीय बोली क्यों जरुरी ?

नई शिक्षा नीति में निचले स्तर की पढ़ाई के माध्यम के लिए मातृभाषा और स्थानीय भाषा के प्रयोग पर जोर दिया गया है, जिसका उद्देश्य बच्चों को उनकी मातृभाषा और संस्कृति से जोड़े रखते हुए उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाना है. अपनी मातृभाषा/स्थानीय भाषा में बच्चे को पढ़ने में आसानी होगी और वो जल्दी सीख पाएंगे. छोटे बच्चे घर में बोले जाने वाली मातृभाषा या स्थानीय भाषा में जल्दी सीखते हैं, अगर स्कूल में भी मातृभाषा का प्रयोग होगा, तो इसका ज्यादा प्रभाव होगा और वे जल्दी सीख पाएंगे और उनका ज्ञान बढ़ेगा.

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Last Updated : Nov 5, 2020, 2:08 PM IST

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