झाबुआ। आदिवासी बहुल झाबुआ की तस्वीर और तकदीर बदलने वाली रेल परियोजना शिलान्यास के 13 साल बाद भी अधूरी है. जिस परियोजना को देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शुरू किया था, वह परियोजना आज बंद होने की कगार पर है. आलम यह है कि झाबुआ वासियों को जिस रेल इंजन की आवाज सुनने का इंतजार सालों से था, वह अब ठंडे बस्ते में जाती दिखाई दे रही है.
तत्कालीन प्रधानमंत्री ने की थी शुरूआत
तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 8 फरवरी 2008 को झाबुआ के हरिभाई बावड़ी के विशाल मैदान में इस परियोजना का शुभारंभ किया था. 678.56 करोड़ की लागत से 204.76 किलो मीटर लंबी इस रेल परियोजना से आदिवासी क्षेत्र की तस्वीर और तकदीर बदलने का सपना दिखाया गया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुसार इस परियोजना को 2012-13 में पूरा होना था, ताकि आदिवासी बहुल झाबुआ जिले के बाशिंदों का रेलगाड़ी में बैठने का सपना पूरा हो सके. तत्कालीन प्रधानमंत्री की घोषणा के बावजूद अब तक महज इस परियोजना का 30 फीसदी के लगभग काम ही पूरा होता दिखाई दे रहा है.
समय के साथ बढ़ परियोजना की लागत
परियोजना में हुई देरी के चलते इस परियोजना की लागत अब तक बढ़कर 17 करोड़ के पार हो चुकी है. लिहाजा रेल मंत्रालय ने अब इस परियोजना को होल्ड पर रख दिया है. मालवा क्षेत्र की महत्वपूर्ण रेल परियोजना में शामिल इंदौर-दाहोद रेल परियोजना पर अब संकट के बादल मंडराने लगे हैं. रेल परियोजना में बजट की कमी के चलते कई कामों को बंद कर दिया गया है. वहीं कई कामों को होल्ड पर रख दिया गया है, जिससे निर्माणाधीन स्थल सुनसान होते जा रहे हैं.