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झाबुआ प्रशासन की अदूरदर्शिता, लॉ कॉलेज के लिए शहर से 8 किमी दूर जमीन का आवंटन

Jhabua Law College Land Allotted: झाबुआ में जिला मुख्यालय से करीब 8 किमी दूर बैतूल-अहमदाबाद नेशनल हाईवे के पास लॉ कॉलेज के लिए जमीन आवंटित की गई है. इस जमीन पर ग्रामीण पहले से ही काबिज हैं. वहीं शहर से इतनी दूर कॉलेज होने पर छात्रों को परेशानी भी उठानी पड़ सकती है.

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झाबुआ प्रशासन की अदूरदर्शिता

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 11, 2024, 6:59 PM IST

झाबुआ। लॉ कॉलेज के लिए आवंटित की जा रही जमीन को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. जो जमीन तय की गई है, वह जिला मुख्यालय से करीब 8 किमी दूर बैतूल-अहमदाबाद नेशनल हाईवे पर स्थित है. ऐसे में विद्यार्थियों को आने जाने में ही दिक्कतें झेलना होगी. इसके अलावा जमीन पर पहले से ही ग्रामीण काबिज हैं. ऐसे में उनके द्वारा अभी से इसका विरोध किया जा रहा है. जिसके चलते प्रशासन के सामने दोहरी चुनौती खड़ी हो गई है.

गौरतलब है कि प्रशासन द्वारा लॉ कॉलेज के लिए ग्राम देवझरी में सर्वे नंबर 676 कुल रकबा लगभग 1.84 हेक्टेयर भूमि प्रस्तावित कर आवंटन की कार्रवाई की जा रही है. प्रक्रिया अंतिम दौर में हैं और इसके पहले ही विरोध के स्वर उठ गए हैं. लॉ कॉलेज निर्माण के लिए पीआईयू की एजेंसी बनाया गया है. बताया जाता है कि जिस कंपनी को भवन निर्माण का आदेश मिला है, बुधवार को यहां जमीन की नप्ती के लिए उनके कर्मचारी पहुंचे थे. इस दौरान ग्रामीणों के विरोध के बाद उन्हें उलटे पैर लौटना पड़ा.

क्यों है ग्रामीणों का विरोध

लॉ कॉलेज के लिए जो जमीन आवंटित की जा रही है. वहां पर लंबे समय से ग्रामीण मरचिया बारिया, गोपालिया बारिया, दिता बारिया, पांगला बारिया, मन्नू बारिया, रमेश बारिया, दल्लू मोरी, कसना मोरी, वसना मोरी और कमल मोरी के द्वारा खेती की जा रही है. इसके अलावा उक्त जमीन पर कुछ ग्रामीणों के मकान भी बने हैं और वह अपने परिवार के साथ यहां रह रहे हैं. कॉलेज निर्माण से वे सभी ग्रामीण बेघर हो जाएंगे. जिसे लेकर ही विरोध के स्वर उठ रहे हैं. ग्रामीणों की मांग है कि लॉ कॉलेज के लिए अन्य स्थान पर जमीन स्वीकृत की जाए. यह विद्यार्थियों के साथ ही ग्रामीणों के हित में होगा.

विद्यार्थियों के लिहाज से भी क्यों सही नहीं है जमीन, जानिए चार बिंदुओ में

दूरी:लॉ कॉलेज के लिए प्रस्तावित जमीन जिला मुख्यालय से करीब 8 किलोमीटर दूर स्थित है. ऐसे में विद्यार्थियों को आवागमन में परेशानी आएगी.

दुर्घटना की संभावना: प्रस्तावित लॉ कॉलेज बेतूल-अहमदाबाद नेशनल हाईवे पर बनेगा. दिन भर में यहां से सैकड़ों वाहन गुजरते हैं. ऐसे हमेशा हादसे की आशंका भी बनी रहेगी.

स्वास्थ्य:लॉ कॉलेज निर्माण के लिए प्रस्तावित जमीन के आसपास ही 8 स्टोन क्रेशर संचालित है. ऐसे में कॉलेज में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है. वहीं दिनभर क्रेशर की आवाज से अध्ययन और अध्यापन कार्य भी प्रभावित होगा.

विवाद: लॉ कॉलेज निर्माण के पश्चात निश्चित तौर पर विद्यार्थियों के द्वारा स्टोन क्रेशर बंद करवाने की मांग की जाएगी. ऐसे में विवाद की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. यदि क्रेशर बंद हुए तो उसका असर शासन को मिलने वाले राजस्व और ग्रामीणों के रोजगार पर भी पड़ेगा.

जमीन आवंटन की प्रक्रिया अंतिम दौर में

एसडीएम एचएस विश्वकर्मा ने बताया कि ग्राम देवझिरी में लॉ कॉलेज निर्माण के लिए जमीन फाइनल कर दी गई है और आवंटन प्रक्रिया भी अंतिम दौर में है. कहीं कोई आपत्ति है तो उसका निराकरण किया जाएगा.

2012 में बंद हो गया था कॉलेज

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने वर्ष 2010 में प्रदेश के लॉ कॉलेज बंद करने के आदेश जारी किए थे. इसके पीछे तर्क दिया गया कि लॉ एक व्यावसायिक पाठ्यक्रम है. इसके लिए पूरा स्ट्रक्चर और स्टाफ अलग से होना चाहिए, जबकि ये कॉलेज एक फैकल्टी के रूप में संचालित हो रहे थे. ऐसे में झाबुआ पीजी कॉलेज में वर्ष 2012 में आखिरी बैच की पढ़ाई पूरी होने के पश्चात यहां क्लास का संचालन बंद हो गया.

2013 में स्वीकृत हुए 31 नए कॉलेज

मध्य प्रदेश शासन ने वर्ष 2013 में पूरे प्रदेश में 31 लॉ कॉलेज स्वीकृत करते हैं, पद भी मंजूर कर दिए थे. शासन में भवन निर्माण के लिए 7 करोड़ 59 लख रुपए भी स्वीकृत कर दिए थे. यही नहीं लॉ कॉलेज के लिए दो प्रोफेसर डॉ प्रवीण चौधरी और डॉ संगीता मसानी की नियुक्ति भी की जा चुकी है. चूंकि यहां लॉ कॉलेज का संचालन नहीं हो रहा है, इसलिए दोनों प्रोफेसर फिलहाल डॉ बीआर आंबेडकर सामाजिक विश्वविद्यालय में प्रतिनियुक्ति पर सेवाएं दे रहे हैं.

एक बार पहले भी जमीन आवंटन के बाद निरस्त करना पड़ा था आदेश

फरवरी 2020 में शासन ने लॉ कॉलेज के नए मुख्यमंत्री निर्माण के लिए रतनपुरा क्षेत्र में आदर्श महाविद्यालय के पास जमीन आवंटित कर दी थी. जब तकनीकि टीम ने निरीक्षण किया तो पता चला की जमीन भवन निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं है. यहां पर पहाड़ी को समतल करना पड़ता. जिससे निर्माण की लागत बढ़ जाती. इसके अलावा कई पेड़ भी काटने पड़ते. इसके बाद जमीन आवंटन निरस्त कर दिया गया. फिर नए सिरे से जमीन चिन्हित करने की प्रक्रिया संपन्न की गई. इस दौरान ग्राम चारोलीपाड़ा में भी 4 हेक्टेयर जमीन चिन्हित की गई थी. हालांकि बाद में इसे भी भवन निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं माना गया.

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