झाबुआ। ठंड के साथ अब आदिवासी अंचल के कालामासी मुर्गे की मांग बढ़ने लगी है. झाबुआ की मूल प्रजाति कड़कनाथ की मांग इसके गुणों के चलते देशव्यापी होने लगी है. अपने रंग-रूप, खास गुणों के चलते नॉन वेज पसंद करने वाले लोगों की यह पहली पसंद है. दूसरे मुर्गों की अपेक्षा इसमें ज्यादा प्रोटीन होता है. लिहाजा कई बीमारियों में भी कड़कनाथ लाभकारी माना जाता है.
ठंड में बढ़ जाती है मांग
यूं तो झाबुआ में कड़कनाथ मुर्गे की मांग साल भर रहती है. मगर ठंड के दिनों में कड़कनाथ मुर्गे की मांग ज्यादा बढ़ जाती है. इसलिए इसके भाव में भी वृद्धि हो जाती है. आम दिनों में 700-800 रुपये में मिलने वाला मुर्गा 1000 से 1200 रुपये में बिकता है. अपने औषधीय गुणों के चलते ना सिर्फ मध्यप्रदेश बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी इसकी मांग बढ़ने लगी है.
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आंध्र प्रदेश से आई कड़कनाथ की मांग
पश्चिमी मध्य प्रदेश के अंतिम छोर पर बसे आदिवासी बहुल झाबुआ जिले से सटे गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र की सीमाओं के साथ साथ इन राज्यों के बड़े शहरी में कड़कनाथ की डिमांड हमेशा बनी रहती है. मगर अब कड़कनाथ की डिमांड झाबुआ से 1350 किलोमीटर दूर आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले से भी निकल कर सामने आई है.
कड़कनाथ मुर्गे की विशेषता
कड़कनाथ झाबुआ के स्थानीय प्रजाति का एक मुर्गा है और इसे देसी भाषा में कालामासी कहा जाता है. इसे कालामासी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका रंग, इसके पंख, इसका मीट और खून भी काले रंग का ही होता है. बायलर या अन्य मुर्गों की अपेक्षा इसके मीट में कई तरह के लाभकारी गुण होते हैं.जिसका वैज्ञानिक प्रमाण होने के चलते इसे ह्रदय रोग ,डायबिटीज अस्थमा , क्षय रोग सहित कई जटिल बीमारियों के लिए इसे लाभकारी माना गया है. अधिक प्रोटीन और कम वसा के चलते नॉनवेज खाने वाले लोग इसे बेहद पसंद करते हैं क्योंकि इसे खाना और पचाना बेहद आसान होता है.