झाबुआ। कोरोना वायरस के चलते देश के उन लोगों पर आर्थिक संकट का बोझ बढ़त जा रहा है, जो सीजनल व्यवसाय करते हैं. मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार भी उन्हीं लोगों में शामिल हैं, जो साल के 8 महीने अपने परिवार के साथ दिन रात काम करते हैं और गर्मी में मेहनत की कमाई हाथों में आती हैं. इन कुम्हारों की आय का प्रमुख स्रोत मिट्टी के बर्तनों की बिक्री ही होती है, लेकिन कोरोना के चलते इनका पूरा साल बर्बाद हो गया है.
कुम्हारों के सामने खड़ा हुआ रोजी रोटी का संकट, सीजन में नहीं हुई एक रुपये की आमदनी - Lockdown
झाबुआ में कुम्मार अच्छी गुणवत्ता के मिट्टी के बर्तन, सुराही, जग और मिट्टी के गिलास सहित अन्य बर्तनों का निर्माण अपने हाथों से करते हैं. लेकिन कोरोना के चलते इनका पूरा साल बर्बाद हो गया है. कड़ी मेहनत करने के बावजूद एक पैसे की कमाई नहीं हुई.

गर्मी के मौसम में ज्यादातर लोग ठंडे पानी के लिए मिट्ठी के मटके खरीदते हैं. झाबुआ में कुम्हार अच्छी गुणवत्ता के मिट्टी के बर्तन, सुराही, जग और मिट्ठी के गिलास सहित अन्य बर्तनों का निर्माण अपने हाथों से करते हैं. आकर्षक रंग रोगन ओर सजो- सज्जा कर इन बर्तनों को ग्रहकों तक पहुंचाया जाता है. गर्मी में होने वाली बिक्री के लिए कुम्हार साल भर मेहनत करता है. जून के बाद बारिश के सीजन में इन कुम्हरों के पास कोई काम नहीं होगा. बरसात में ना तो बर्तन तैयार हो सकते हैं और ना ही उन्हें पकाने के लिए भट्टी लगाई जा सकती है.
कुम्हारों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है. कोरोना के चलते हर प्रकार के धार्मिक और सामाजिक आयोजनों पर बंदिश है. इसके साथ ही लॉकडाउन के चलते ग्राहक बाजार नहीं आ रहे हैं. जिससे उनका ये साल कठिनायों से गुजरता दिखाई दे रहा हैं. केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज की घोषणा की जरूरी की है लेकिन देखने होगा कि उसका कितना फायदा कुम्हारों को होगा.