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लाखों की लागत से बच्चों के लिए बना बगीचा बदहाल, एक दिन भी बच्चे नहीं जा पाए गार्डन - Thandla Municipal Council jhabua

बच्चों के मनोरंजन को ध्यान में रखते हुए साल 2004 में झाबुआ जिले की थांदला नगर परिषद में 60 लाख रुपए से ज्यादा की लागत से बाल उद्यान बनाया गया था, लेकिन इस उद्यान का फायदा एक दिन भी बच्चे नहीं ले पाए. 15 साल बीत जाने के बाद भी वो बालउद्यान के दरवाजे बच्चों के लिए नहीं खुल पाए. पढ़ें पूरी खबर...

garden in bad condition
बगीचा हुआ बदहाल

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Published : Oct 22, 2020, 6:19 AM IST

झाबुआ। जनता को लाभ देने के लिए शुरू की गई पहल पर किस तरह पलीता लगया जाता है, इसकी बानगी आदिवासी बाहुल्य जिला झाबुआ में देखने को मिली. जिल की थांदला नगर परिषद ने 60 लाख रुपए की ज्यादा की लागत से बाल उद्यान बनाया गया था, लेकिन इस उद्यान का फायदा एक दिन भी बच्चे नहीं ले पाए. महानगरों की तर्ज पर इस बगीचे में बच्चों के मनोरंजन के लिए टॉय ट्रेन, हाईटेक कप प्लेट झूला, छोटे झूले, नाव, बाइक झूला, चकरी सहित अलग-अलग कई झूले लगाए गए थे लेकिन जनप्रतिनिधियों और जिम्मेदारों के गैर जिम्मेदाराना रवैया के चलते यह बगीचा कभी जनता के उपयोग में आया ही नहीं.

बगीचा हुआ बदहाल

15 सालों में भी नहीं शुरू हो पाया बगीचा

बीते 15 सालों में तीन नगर परिषद के कार्यकाल गुजर गए, लेकिन किसी ने जनता के इस जरूरी मुद्दे की ओर ध्यान ही नहीं दिया. 2004 में कांग्रेस समर्थित नगर परिषद अध्यक्ष बाबूलाल चौहान ने इस बगीचे का निर्माण करवाया था. 27 जुलाई 2004 को तत्कालीन कृषि एवं सहकारिता राज्य मंत्री कांतिलाल भूरिया ने इसका लोकार्पण किया था लेकिन फिर भी बगीचा शुरू नहीं हो पाया था. अध्यक्ष बाबूलाल चौहान के कार्यकाल के खत्म होने के बाद इस बगीचे की सुध 12 साल बाद 2016 में बीजेपी परिषद में अध्यक्ष रहीं सुनीता वसावा ने लिया था.

कागजों में हुआ लाखों रुपए खर्च

2003-2004 में बने इस बगीचे का नामकरण 2016 में बीजेपी परिषद ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ केशव राव बलिराम हेडगेवार के नाम पर किया था. परिषद सुनीता वसवा ने बगीचे का नाम तो बदला दिया, लेकिन इसे जनता के उपयोग लायक नहीं बना पाए. बगीचा भले ही जनता के उपयोग लायक न बना हो, लेकिन इसके मेंटेनेंस और रखरखाव पर तत्कालीन परिषद ने भी लाखों रुपए का खर्च कागजों में ही कर डाला.

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नगर परिषद के वर्तमान अध्यक्ष बंटी डामोर का मानना है कि पूर्व परिषदों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. फिलहाल बगीचे की हालत खराब है, और इसके रखरखाव के लिए लाखों रुपए की आवश्यकता है. परिषद में इसके लिए प्रस्ताव लाया जाएगा, लेकिन यह प्रस्ताव पास होगा या नहीं कहना मुश्किल है.

नगरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के मनोरंजन का दायित्व नगरी निकायों का होता है, इसके लिए बाग-बगीचे बनाए जाते हैं. थांदला में जनता की गाढ़ी कमाई और सरकार से मिले सहयोग से जिस उद्यान का निर्माण कराया गया था, वह जनता के काम आए बिना ही कबाड़ हो गया.

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