झाबुआ। सूबे की आरक्षित रतलाम लोकसभा सीट पर पिछले कई चुनावों से भील जाति का प्रत्याशी चुनाव जीतता आ रहा है. इस बार भी बीजेपी-कांग्रेस ने इस सीट पर भील जाति के समीकरणों को ध्यान में रखते हुए प्रत्याशियों का चयन किया है. रतलाम-झाबुआ संसदीय क्षेत्र में आने वाली आठों विधानसभा सीटों पर इस जाति का वर्चस्व माना जाता है.
रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट पर कायम है भील जाति का वर्चस्व, इस बार भी बीजेपी-कांग्रेस ने लगाया दांव - कांतिलाल भूरिया
मध्यप्रदेश की आरक्षित रतलाम लोकसभा सीट पर पिछले कई चुनावों से भील जाति का प्रत्याशी चुनाव जीतता आ रहा है. जमुना देवी, भागीरथ सिंह डामोर, दिलीप सिंह भूरिया और कांतिलाल भूरिया जैसे दिग्गज नेता भील जाति से ही आते हैं, जो इस सीट से सांसद चुने जाते रहे हैं. इस बार भी बीजेपी-कांग्रेस ने इस सीट पर भील जाति के समीकरणों को ध्यान में रखते हुए प्रत्याशियों का चयन किया है.
रतलाम संसदीय सीट पर 1951 से लेकर 2015 के उपचुनाव तक भील जाति का प्रत्याशी ही जीतता रहा है. लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटें सैलाना, झाबुआ, थांदला, पेटलावद, जोबट और अलीराजपुर आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. जिनमें भील जाति के मतदाता सर्वाधिक हैं. पूरे संसदीय क्षेत्र में इस जाति का वर्चस्व होने के चलते सियासी पार्टियां इसी जाति के प्रत्याशी पर दांव लगाती है. वर्तमान में रतलाम झाबुआ सीट से सांसद और कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया इसी जाति से आते है. जबकि बीजेपी प्रत्याशी जीएस डामोर भी भील जाति का ही प्रतिनिधित्व करते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार चंद्रभान सिंह भदोरिया कहते हैं कि जमुना देवी, भागीरथ सिंह डामोर, दिलीप सिंह भूरिया और कांतिलाल भूरिया जैसे दिग्गज नेता भील जाति से ही आते हैं, जो इस सीट से सांसद चुने जाते रहे हैं. रतलाम सिटी विधानसभा सीट को छोड़कर सभी सीटों पर सामान्य और ओबीसी वर्ग के मतदाताओं के वोटरों की संख्या 10 फ़ीसदी के आसपास है. पूरे रतलाम संसदीय क्षेत्र में लगभग 25 फ़ीसदी वोटर सामान्य और ओबीसी जाती का प्रतिनिधित्व करते है जो किसी भी दल के उम्मीदवार की हार और जीत की भूमिका में अहम किरदार निभाते है, लिहाजा दोनों ही दल के नेता इन्हें मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते.