जबलपुर। कोविड की दूसरी बेव के बीच एक नई बीमारी ब्लैक फंगस तेजी से पैर पसार रही है. मध्यप्रदेश के सिर्फ जबलपुर मेडिकल कॉलेज में ही ब्लैक फंगस मरीजों का आंकड़ा 100 के पार पहुंच चुका है. शहर के निजी अस्पतालों में भी 50 से ज्यादा मरीजों का इलाज चल रहा हैं. इस बीच अच्छी बात ये भी है कि 39 मरीजों की सर्जरी हुई है वो लोग तेजी से रिकवर हो रहे हैं. 74 वर्षीय वृद्ध में ब्लैक और वाइट दोनों तरह के फंगस मिले हैं. फंगस का संक्रमण फैलने की वजह से जबड़ा काटकर अलग करना पड़ा.
तेजी से हो रही है रिकवर
ब्लैक फंगस के बढ़ते मरीजों के बीच ETV BHARAT की टीम ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस जबलपुर मेडिकल कॉलेज में बने ब्लैक फंगस वार्ड का जायजा लिया. जहां सभी पोस्ट कोविड और फंगस से पीड़ित मरीज भर्ती हैं. राहत की बात ये है कि अधिकतर मरीज शुरूआती चरण में इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज आ गए थे. जिस कारण वे रिकवर भी तेजी से कर रहे हैं. कुछ ही मरीज ऐसे है जिनका फंगस दिमाग तक फैल चुका है. लेकिन डॉक्टर उन्हें भी कंट्रोल करने की कोशिश कर रहे हैं.
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एक ही मरीज में ब्लैक- वाइट का इंफेक्शन
जबलपुर निवासी 74 साल के वृद्ध में ब्लैक के साथ वाइट फंगस मिलने का पहला केस आया है. बुजुर्ग कोरोना को हरा चुका है. नेजल एंडोस्कोपी के बाद नाक, कान- गला रोग विभाग के विशेषज्ञों ने उसके तालू- जबड़े का ऑपरेशन कर सड़ चुके हिस्से को काटकर अलग कर दिया है. अब उनकी हालत खतरे से बाहर है.
समय रहते किया इलाज
गढ़ा निवासी मरीज आनंद श्रीवास्तव भी इसी वार्ड में भर्ती हैं. उनकी पत्नी ने बताया कि 4 अप्रैल से उनके पति को बुखार आ रहा था. 8 तारीख को टाइफाइड की जांच कराई, फिर कोविड की, 17 दिन तक मेडिकल के कोविड वार्ड आईसीयू में भर्ती रहे. 25 को डिस्चार्ज करा ले गए, इसके बाद सिर में तेज दर्द होने लगा, न्यूरोलॉजिस्ट को दिखाया. उसके बाद मेडिकल कॉलेज लेकर आए. यहां उन्हें फंगल इंफेक्शन बताया गया, 17 मई को ऑपरेशन हुआ. जिसके बाद अब बहुत आराम है. इसी तरह कई और मरीज है जो कि कोरोना के बाद अब ब्लैक फंगस को भी हराकर स्वास्थ हो रहे हैं.
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जबलपुर मेडिकल कॉलेज के ईएनटी विभाग में पदस्थ डॉक्टर सौम्या सैनी के मुताबिक आंख, जबड़ा और तालू से जुड़े ब्लैक फंगस के मरीज अधिक संख्या में आ रहे हैं. फंगस के कारण मेडिकल में अब तक एक भी मरीज की आंख नहीं निकाली गई. नेजल एंडोस्कोपी के माध्यम से आंख के पिछले हिस्से में भरी मवाद को बाहर निकालकर आंखों की रोशनी बचाई गई. डॉक्टर सौम्या सैनी के मुताबिक कोविड इलाज के दौरान व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. उन्होंने बताया कि अभी तक सारे मरीज शुगर पीड़ित ही मिले हैं. इसमें से कुछ काे पहले से शुगर था और कुछ को पोस्ट कोविड के बाद हुआ, अधिकतर मरीज को स्टेरॉयड इंजेक्शन भी दिए गए हैं.
नाक- आंख के पास सूजन और दर्द से शुरूआत डॉक्टर सौम्या सैनी ने बताया कि ऐसे मरीजों की माइक्रोबायोलॉजी में जांच कराते हैं. इसके बाद एंडोस्कोपी, एमआरआई और सिटी स्कैन की जांच कराने के बाद निर्णय लेते हैं कि ऑपरेशन करना है या दवा से ठीक हो जाएगा. अस्पतालों में म्यूकर माइकोसिस के मरीजों की संख्या बढ़ने के साथ ही लिपोसोमल एम्फोसिटीरिन-बी के लिए लोग परेशान हो रहे हैं. मेडिकल कॉलेज में इसकी दवा प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई है. एम्फोसिटीरिन-बी बेहद कम बिकने वाली दवा होने के कारण इसे दवा कारोबारी नहीं रखते थे. निर्माता भी सीमित मात्रा में ही बना रहे थे.
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मरीज के वजन के मुताबिक दी जाती है इंजेक्शन की डोज
फंगल इंफेक्शन में मरीज को उसकी शरीर की क्षमता के अनुसार 50 एमएल से 100 एमएल के बीच में इंजेक्शन लगाने पड़ते हैं. इंजेक्शन के बाद सर्जरी और फिर कुछ खाने वाली दवा की जरुरत होती है. इंजेक्शन पहले और सर्जरी के बाद लगती है, इंजेक्शन के अलावा अभी कोई इस बीमारी का विकल्प नहीं है. एम्फोसिटीरिन-बी के विकल्प के रुप में उपलब्ध इंजेक्शन से किडनी फेल होने का खतरा है. इस कारण इसे नहीं लगाया जा रहा है.
ईएनटी विभाग के मुताबिक मेडिकल कालेज में अभी तक कुल 106 मरीज भर्ती हैं. इसमें 39 का ऑपरेशन मेडिकल में किया जा चुका है. 12 बाहर से ऑपरेशन कराने के बाद भर्ती हुए हैं. चार की पेशेंट मौत हो चुकी है. 5 के दिमाग तक फंगल पहुंच चुका है. वहीं कुछ को ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है.