जबलपुर। कानून प्रभावी होने से पहले के मामले में अपराध दर्ज किए जाने को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. याचिका में कहा गया था कि शिकायत दर्ज करवाने के चार साल बाद भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया है. जब उसने रिश्वत दी थी तो उस दौरान घूस देना अपराध नहीं था. जस्टिस विशाल धगट की एकलपीठ ने मामले में मप्र शासन, दमोह एसपी और जबेरा थाना प्रभारी को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिए है.
- 2021 में दर्ज हुई दौबारा एफआईआर
याकिचाकर्ता केशव प्रसाद शर्मा की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि कृषि विस्तार समन्वयक के रूप में नियुक्ति के लिए तीर्थेश शर्मा नामक व्यक्ति को दो लाख रुपए दिए थे. रकम लेने के बाद उसने नियुक्ति पत्र भी दे दिए, जो बाद में फर्जी साबित हुए. इसके बाद रकम वापस मांगने पर तीर्थेश ने मना कर दिया. इसके बाद उन्होंने 17 नवंबर 2016 को उसके खिलाफ दमोह के जबेरा थाने में एफआईआर दर्ज कराई. पुलिस ने तीर्थेश के खिलाफ धोखाधड़ी सहित अन्य धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया. एफआईआर दर्ज करवाने के चार साल बाद जनवरी 2021 में जबेरा पुलिस ने उसके खिलाफ रिश्वत देने आरोप में एफआईआर दर्ज कर ली.