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उस समय घूस देना अपराध नहीं था, फिर भी कैसे दर्ज हुई एफआईआर?- कोर्ट

वर्ष 2016 में तीर्थेश शर्मा नामक व्यक्ति पर दो लाख रुपए की रिश्वत का मामला दमोह के जबेरा थाने में दर्ज हुआ था. शर्मा की एफआईआर में 2018 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराएं जोड़ दी. कोर्ट ने जिम्मेदारों से पुछा है कि उस समय घूस देना अपराध नहीं था, फिर भी कैसे दर्ज हुई एफआईआर?

Jabalpur High Court
जबलपुर हाई कोर्ट

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Published : Mar 24, 2021, 11:09 AM IST

जबलपुर। कानून प्रभावी होने से पहले के मामले में अपराध दर्ज किए जाने को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. याचिका में कहा गया था कि शिकायत दर्ज करवाने के चार साल बाद भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया है. जब उसने रिश्वत दी थी तो उस दौरान घूस देना अपराध नहीं था. जस्टिस विशाल धगट की एकलपीठ ने मामले में मप्र शासन, दमोह एसपी और जबेरा थाना प्रभारी को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिए है.

  • 2021 में दर्ज हुई दौबारा एफआईआर

याकिचाकर्ता केशव प्रसाद शर्मा की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि कृषि विस्तार समन्वयक के रूप में नियुक्ति के लिए तीर्थेश शर्मा नामक व्यक्ति को दो लाख रुपए दिए थे. रकम लेने के बाद उसने नियुक्ति पत्र भी दे दिए, जो बाद में फर्जी साबित हुए. इसके बाद रकम वापस मांगने पर तीर्थेश ने मना कर दिया. इसके बाद उन्होंने 17 नवंबर 2016 को उसके खिलाफ दमोह के जबेरा थाने में एफआईआर दर्ज कराई. पुलिस ने तीर्थेश के खिलाफ धोखाधड़ी सहित अन्य धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया. एफआईआर दर्ज करवाने के चार साल बाद जनवरी 2021 में जबेरा पुलिस ने उसके खिलाफ रिश्वत देने आरोप में एफआईआर दर्ज कर ली.

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  • 2018 में आया भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम

याचिका में कहा गया था कि तीर्थेश शर्मा लोक सेवक नहीं था और उस समय घूस देना अपराध नहीं था. वर्ष 2018 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में संशोधन कर धारा-12 के तहत घूस देने को भी दांडिक अपराध बना दिया गया है. याचिका की सुनवाई के बाद एकलपीठ ने अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आदर्श मुनि त्रिवेदी, अधिवक्ता आशीष, असीम त्रिवेदी, अपूर्व त्रिवेदी और आशीष कुमार तिवारी ने पैरवी की.

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