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1971 के युद्ध के विजय का प्रतीक 'स्वर्णिम विजय मशाल' जबलपुर पहुंची, रिसेप्शन सेरेमनी का हुआ आयोजन

युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की ऐतिहासिक जीत का प्रतीक 'स्वर्णिम विजय मशाल' जबलपुर पहुंची. ग्रेनेडियर रेजीमेंटल सेंटर के कर्नल होशियार सिंह सेना ग्राउंड में स्वर्णिम विजय मशाल की रिसेप्शन सेरेमनी का आयोजन किया गया. यह मशाल 11 दिनों तक शहर में ही रहेगी.

svarnim vijay mashaal reached Jabalpur
जबलपुर पहुंची स्वर्णिम विजय मशाल

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Published : Oct 1, 2021, 11:08 PM IST

जबलपुर।सन 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की ऐतिहासिक जीत के 50 साल पूरे होने जा रहे हैं. यहीं वजह है कि इसे भारतीय सेना स्वर्णिम विजय वर्ष के रुप में मना रही है. इसी सिलसिले में शुक्रवार को अमर जवान ज्योति से निकली स्वर्णिम विजय मशाल जबलपुर पहुंची. जहां ग्रेनेडियर रेजीमेंटल सेंटर के कर्नल होशियार सिंह सेना ग्राउंड में स्वर्णिम विजय मशाल की रिसेप्शन सेरेमनी का आयोजन किया गया.

जबलपुर पहुंची स्वर्णिम विजय मशाल

आर्मी के जवानों ने किया खुखरी डांस

दिल्ली से आई स्वर्णिम विजय मशाल को रिसेप्शन सेरेमनी लेफ्टिनेंट कर्नल एस मोहन ने रिसीव किया. फिर जीआरसी में बने युद्ध स्मारक तक स्वर्णिम विजय मशाल को सम्मान के साथ ले जाया गया. जहां शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई. इसके साथ ही रिसेप्शन सेरेमनी में सेना के बैंड दल ने देशभक्ति गीतों का धुनमय प्रदर्शन किया. वहीं आर्मी के जवानों ने गोरखालैंड का खुखरी डांस किया. इसके अलावा मशाल की रिसेप्शन सेरेमनी में सेना के रिटायर्ड अधिकारियों और शहीदों के परिजनों को सम्मानित किया गया.

11 दिन जबलपुर में रहेगी स्वर्णिम विजय मशाल

दरअसल बीते साल 16 दिसंबर को दिल्ली के इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्योति से चार मशालों को देश की चारों दिशाओं में रवाना किया है. बीते 10 माह से चारों विजय मशालें देश के कौने-कौने से लेकर शहीदों के गांव-गांव पहुंच रही है. इनमें से ही एक स्वर्णिम विजय मशाल शुक्रवार को जबलपुर पहुंची. जबलपुर पहुंची स्वर्णिम विजय मशाल अगले 11 दिन शहर में रहेगी. उसके बाद स्वर्णिम विजय 12 अक्टूबर को रायपुर के लिए रवाना किया जाएगा.

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पाकिस्तान के गुमराह करने के बाद भी जीता भारत

इस मौके पर 1971 की भारत पाकिस्तान लड़ाई में अपना योगदान देने वाले रिटायर्ड ब्रिगेडियर जीएस वासवान ने बताया कि जब भारत पाकिस्तान युद्ध हो रहा था, तब पाकिस्तान ने भारतीय सेना को भ्रमित करने के लिए गाड़ी के ऊपर बड़ी लकड़ी को इस कदर से बांधा था कि वह दूर से देखने पर तोप की तरह दिखाई दे रही थी. इतना ही नहीं पाकिस्तान ने तोप की रिकॉर्डेड आवाज को चलाकर भी गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन भारतीय सैनिकों के आगे उसकी चालाकी जरा भी नहीं चली. पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी.

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1971 की लड़ाई में जबलपुर का महत्वपुर्ण योगदान

लेफ्टिनेंट कर्नल एस मोहन ने कहा कि आज का दिन उनके और जबलपुर के लिए गौरव का दिन है. क्योंकि जबलपुर का 1971 की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उन्होंने शहीद हुए सैनिकों के बलिदान को याद करते युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील भी की.

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