जबलपुर।कोरोना महामारी (Corona epidemic) ने मनुष्य को प्रकृति से खिलवाड़ का परिणाम दिखा दिया है. इस कोरोना से वर्तमान में हर देश परेशान है. कई देश इससे निजात पा चुके है, तो कई देश ऐसे है जो इसकी चंगुल से बाहर नहीं आ पा रहे है. इन्हीं देशों में शामिल है भारत! देश के कई अस्पतालों में कोरोना से संक्रमित मरीज अस्प्ताल में जिंदगी को बचाने के लिए मौत से जंग लड़ रहे है, तो वहीं अस्प्ताल के बाहर मरीज के परिजन जैसे-तैसे अपने दिन बिता रहे है, मरीज को तो अस्पताल में भोजन की व्यवस्था हो जाती है, लेकिन उनके परिजन तपती धूप में पेड़ के नीचे किसी तरह से भोजन बना कर अपने मरीज के ठीक होने का इंतजार कर रहे है. मध्य प्रदेश की संस्करधानी जबलपुर के सरकारी अस्पतालों की तस्वीर भी कुछ इसी तरह की सामने आई है. जहां मरीज के परिजन पेड़ के नीचे किसी तरह अपना जीवन गुजार रहे है. कोई 15 दिन से तो कोई एक माह से अपने मरीज के ठीक होने का इंतजार अस्पताल के बाहर से कर रहा है.
- संभाग के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज की तस्वीरें
जबलपुर का नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज (Netaji Subhash Chandra Bose Medical College) जहां पर की आसपास के जिलों से इलाज के लिए मरीजों को लाकर भर्ती किया जाता है. मरीज का इलाज तो अस्पताल के भीतर हो रहा है, लेकिन उनके परिजन बाहर पेड़ के नीचे बैठकर अपने परिजनों के स्वस्थ होने का इतंजार कर रहे है. पेड़ के नीचे ही कच्चे चूल्हे में खाना बनते है, कभी कच्चा तो कभी अधपका भोजन खाकर परिजनों इंतजार कर रहे है अपने मरीज के स्वास्थ्य होकर अस्पताल से बाहर आने का.
- पति का इलाज करवाने आई महिला बताई कड़वी सच्चाई
मंडला जिले के भीकमपुर में रहने वाली महिला आशा बर्मन के पति का एक माह से मेडिकल कॉलेज में इलाज चल रहा है. पति अस्पताल में भर्ती है. आशा बाई थोड़ी-थोड़ी देर में जाकर पति को देख आती है, लेकिन उसे अपनी और बच्चो की भूख मिटाने के लिए खुले आसमान में पेड़ के नीचे कच्चे चूल्हे में खाना बनाना पड़ता है. आशा बाई बताती है कि वह एक माह से इसी तरह खुले आसमान के नीचे रहकर अपने पति की देखभाल कर रही है. पति कब ठीक होंगे ये पता नहीं लेकिन ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन मैं और मेरे बच्चे बिमार हो जाएंगे.
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- चूल्हा जलाने के लिए नही मिलती लकड़ी और कंडे
आशा बाई को खाना बनाने के लिए चूल्हे में लकड़ी-कंडो की जरूरत पड़ती है, लेकिन शहर में ना ही लकड़ी मिलती है और ना ही कंडे. ऐसे में यहां-वहां से बीनकर लकड़ी, कंडे और कागज की व्यवस्था करना पड़ती है, तब जाकर खाना बनता है और हम खाना खा पाते है.
- दूसरी बिमारी पीड़ित मरिजों के परिजन को भी परेशानी
पन्ना जिले के अजयगढ़ का रहने वाला युवक अपनी मां को कैंसर का इलाज करवाने के लिए मेडिकल कॉलेज लाया है. उसकी कहानी भी जुदा नहीं है, कुछ दिन पहले युवक के मां की अस्प्ताल से छुट्टी कर दी गई, लेकिन केंसर से पीड़ित मां की सिकाई करना होता है, अस्प्ताल में बेड खाली है नहीं तो युवक अपनी बीमार मां को लेकर मेडिकल कॉलेज के बाहर पड़ा हुआ है. वह भी स्वयं खाना बनाता है कभी लकड़ी नहीं मिलती है, तो कागज में आग लगाकर खाना बनाना पड़ता है, कई मर्तबा तो कच्चा खाना तक खाना पड़ता है.
- कुछ समाजसेवी संस्थाएं कर देती है मदद