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अभिशाप नहीं, वरदान है पराली! एमपी के वैज्ञानिकों की नई खोज, कम होगा प्रदूषण-खेती को मिलेगी ताकत - मध्य प्रदेश लेटेस्ट न्यूज

मध्य प्रदेश के कृषि वैज्ञानिकों ने पराली की समस्या का हल ढूंढ लिया है. इंदौर और जबलपुर में कृषि वैज्ञानिकों ने केमिकल और एक मशीन तैयार की है. जिसकी मदद से पराली खाद में तब्दील हो जाएगी. वैज्ञानिकों का मनना है कि, इससे ना केवल खेतों की उर्वरा शक्ति को बचाया जा सकेगा, बल्कि पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को भी कम किया जा सकेगा. भारत सरकार जल्द की इन प्रयोगों को बाजार में लाने की तैयारी में है. (Solution to Problem of Stubble in Madhya Pradesh)

MP scientists found solution of stubble
एमपी के वैज्ञानिकों ने ढूंढा पराली का हल

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Published : Dec 22, 2021, 10:05 AM IST

Updated : Dec 22, 2021, 11:28 AM IST

इंदौर/जबलपुर।भारत में पराली की समस्या से सिर्फ खेतों में नहीं, बल्कि राजनीति में भी दिखाई देता है. ये मुद्दा राजनीतिक गलियारों में भी अक्सर उठता है. सबसे ज्यादा दिल्ली, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में पराली की समस्या काफी जटील है. लेकिन इस समस्या का समाधान इंदौर और जबलपुर के कृषि वैज्ञानिकों ने निकाल लिया है. ICAR की इंदौर शाखा ने एक ऐसा केमिकल विकसित किया है, जिसका छिड़काव करने से पराली खाद का रूप ले लेगी. भारत सरकार इस पूसा डीकंपोजर (PUSA Decomposer) नाम की दवाई को लॉन्च करने की तैयारी में है. (MP Agricultural Scientists Made Pusa Decomposer Chemical)

इसी के साथ जबलपुर के खरपतवार अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने भी पराली की समस्या को लेकर जैविक तरीका इजात किया है. इसमें ना तो पराली जलाने की आवश्यकता होगी और ना ही कोई केमिकल का छिड़काव करने की. दरअसल जबलपुर की इस संस्थान ने हैप्पी सीडर (Happy Seeder Machine) नाम से एक मशीन तैयार की है. यह मशिन पराली को खेत में मिला देती है, जिससे पराली खाद का काम करती है. (MP Agricultural Scientists Made Happy Seeder Machine)

एमपी के वैज्ञानिकों ने ढूंढा पराली का हल

कई राज्यों में हैं पराली जलाने की समस्या

पराली जलाने से होने वाली समस्या कई राज्यों में है. हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश से सटे हुए विभिन्न जिलों में किसान फसल की कटाई के बाद पराली में आग लगा देता है. पराली जलाने के कारण न केवल राज्यों के तापमान में वृद्धि हो रही है, बल्कि कृषि के लिए उपजाऊ जमीन भी तापमान के कारण कम उपजाऊ हो चली है. (Solution to Problem of Stubble in Madhya Pradesh)

इसके अलावा पराली जलाने की घटनाओं का सीधा असर हर साल दिल्ली में नजर आता है. जहां पराली जलने के बाद एयर क्वालिटी इंडेक्स खतरे के निशान से भी ऊपर पहुंचता है. इन राज्यों के अलावा अब मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और अन्य सीमावर्ती राज्यों में भी पराली जलाने की घटनाएं बढ़ रही है. इससे कई बार बड़ी आगजनी भी हो चुकी है. जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है.

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केमिकल से सड़ कर खाद बनेगी पराली

इंदौर के कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि कॉलेज मौसम विभाग के अध्यक्ष एचएल खपेडिया ने बताया कि, लंबी कोशिशों के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र इंदौर ने पूसा डीकंपोजर नाम का केमिकल और कैप्सूल तैयार किया है. इससे खेतों में फसल कटाई के बाद बची पराली को खाद के रूप में उपयोग किया जा सकेगा.

इस केमिकल को सबसे पहले पानी की एक निर्धारित मात्रा में घोलकर उर्वरक की तरह पराली पर छिड़काव करना होगा. छिड़काव के कुछ दिनों बाद पराली अपने आप सड़ कर खाद के रूप में तब्दील हो जाएगी. कृषि अनुसंधान परिषद के इस रिसर्च को हाल ही में कई बार प्रयोग में लाया गया है. जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं. माना जा रहा है कि, विभिन्न राज्यों में पूषा-डी कंपोजर के कारण पराली जलाने की घटनाओं पर नियंत्रण लगाया जा सकेगा.

ऑर्गेनिक फार्मिंग का भी लाभ ले सकेंगे किसान

एचएल खपेडिया के मुताबिक, पराली के खाद में तब्दील होने के बाद पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों के किसान ऑर्गेनिक फार्मिंग का भी लाभ ले सकेंगे. हाल ही में भारत सरकार के कृषि मंत्रालय ने इस पूसा डीकंपोजर को देश के किसानों को वितरित करने की तैयारी है. यह लिक्विड जल्द ही कृषि कॉलेजों के अलावा किसानों की पहुंच में होगा.

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जबलपुर के वैज्ञानिकों ने तैयार की अनोखी मशीन

जबलपुर के खरपतवार अनुसंधान संस्थान ने एक अनोखी मशीन तैयार की है. इससे पराली को जलाएं बिना खेती कि जा सकती है. कृषि वैज्ञानिकों ने हैप्पी सीडर नाम की एक मशीन तैयार की है. इस मशीन से खेत को जोते बिना सीधे बोवनी की जा सकती है. ट्रायल में यह प्रयोग सफल भी हुआ है.

किसानों को होगा चौतरफा फायदा

खरपतवार अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉक्टर जेके मिश्रा का कहना है कि, पराली जलाने से खेत की नमी खत्म हो जाती है. इसी के साथ कई ऐसे कीट भी मर जाते है, जो फसल के लिए लाभदायक होते है. खेती के इस नए तरीके से ना केवल पराली जलाने से होने वाले नुकसान से पर्यावरण बच सकेगा, बल्कि यही पराली खेत में पहले मल्चिंग का काम करेगी. ताकि खरपतवार का उपयोग कम किया जा सके. वहीं दूसरी ओर पराली की वजह से खेत में पानी के उत्सर्जन को रोका जा सकता है. इसके साथ ही कई बार खेत में ट्रैक्टर चलाने का खर्च भी बचाया जा सकता है.

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प्रदूषण और किसानों की लागत होगी कम

डॉक्टर जेके मिश्रा के अनुसार, कृषि वैज्ञानिकों का यह प्रयोग बेहद सरल है. हैप्पी सीडर मशीन कुछ महंगी हो सकती है, लेकिन एक गांव में कम से कम एक हैप्पी सीडर मशीन लगाना कोई बड़ी बात नहीं है. इससे न केवल गांव बल्कि पूरे पर्यावरण को बचाने की कोशिश की जा सकती है. इससे किसानों की खेती की लागत को कम किया जा सकता है.

Last Updated : Dec 22, 2021, 11:28 AM IST

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