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आचार्य रजनीश ओशो का जबलपुर से था गहरा नाता, अब यादों से ज्यादा कुछ शेष नहीं

तीखे विचारों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान रखने वाले आचार्य रजनीश ओशो किसी पहचान के मोहताज नहीं है. रजनीश ओशो का जन्म भले ही रायसेन जिले के कुचबाड़ा गांव में हुआ था. लेकिन वे दार्शनिक जबलपुर में बने थे. यही वजह है कि रजनीश ओशो का जबलपुर से भी गहरा नाता है.

रजनीश ओशो

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Published : Jul 20, 2019, 5:38 PM IST

जबलपुर। एक ऐसा आध्यात्मिक गुरू जिसके उपदेशों ने हमेशा विवादों को जन्म दिया, धार्मिक रूढ़िवादिता के कठोर आलोचक थे ओशो, जी हां वहीं ओशो जिन्होंने अमेरिका को उसके घुटनों पर लाकर खड़ा कर दिया था. ओशो की सीख और उपदेशों का अंदाजा अमेरिका में बसे रजनीशपुरम से ही लग जाता है. लेकिन उन्होंने अपनी जिंदगी एक बड़ा हिस्सा जबलपुर में रहते हुए ही गुजारा था.

रजनीश ओशो का जबलपुर से था गहरा नाता

जबलपुर के भंवर ताल में ज्ञान की प्राप्ति हुई
रजनीश की प्रारंभिक शिक्षा जबलपुर में हुई, दर्शनशास्त्र में m.a. करने के लिए रजनीश सागर गए फिर कुछ दिनों तक रायपुर में नौकरी करने के बाद वे दोबारा जबलपुर लौट आए. जबलपुर में महाकौशल कॉलेज में उन्होंने दर्शनशास्त्र पढ़ाना शुरू किया कॉलेज में पढ़ाने के दौरान ही ओशो ने छात्रों का एक संगठन बनवाया और व्यवस्था के खिलाफ लोगों को आंदोलन करने की शिक्षा दी. जबलपुर के भंवरताल गार्डन में एक पेड़ के नीचे बैठे- बैठे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी इसके बाद ओशो ने बकायदा प्रवचन देना शुरू कर दिया था.

अपने पूरे जीवन में लगभग एक लाख पुस्तकें पढ़ी
आचार्य रजनीश ने अपने पूरे जीवन में एक लाख से भी ज्यादा पुस्तकें पढ़ी थी. उन्होंने तो खुद आचार्य रजनीश के नाम से गीता तक लिखे थे, ओशो से जुड़े कई किस्से जबलपुर के लोगों को पता है महाकौशल कॉलेज में ओशो ने अपनी सारी डिग्रियां जला दी थी. उनका मानना था डिग्रियों को ज्ञान का आधार नहीं माना जा सकता. धार्मिक अंधविश्वास, सामाजिक अंधविश्वास, राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ था. ओशो कुछ लिखते नहीं थे लेकिन जो बोलते थे उसे ही पंजीबद्ध किया गया है. ओशो ने धर्म राजनीति समाज परिवार देश दुनिया दर्शन यहां तक कि संभोग के बारे में भी प्रवचन दिए हैं. संभोग से समाधि तक उनकी सबसे विवादित पुस्तक रही है

जबलपुर शहर से ओशो का गहरा नाता रहा है लेकिन आज उनके चाहने वाले लोग यहां कम ही है. न ही उनकी यादों को सहेजने का काम किया गया है. जबलपुर के देवताल आश्रम में आज भी ओशो की स्मृतियां देखने को मिल जाती है. जिन्हें देखने के लिए दुनिया भर से ओशो के अनुयायी आते है. हालांकि जबलपुर शहर ने ओशो से जुड़ी विरासत को सहेज कर नहीं रखा.

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