जबलपुर। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत दाखिला पाने वाले छात्रों की शुल्क प्रतिपूर्ति की राशि सरकार द्वारा नहीं दिये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी, जिसमें कहा गया था कि मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम-2009 के तहत 14 वर्ष से कम उम्र के कमजोर वर्ग के बच्चों पर होने वाले व्यय की प्रतिपूर्ति सरकार को करनी है, जस्टिस विशाल धगत की एकलपीठ ने याचिका का निराकरण करते हुए प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा विभाग को निर्देशित किया है कि वे याचिकाकर्ता के आवेदन पर एक माह के भीतर सहानुभूतिपूर्वक विचार कर विधि अनुसार कार्रवाई करें.
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अशासकीय विद्यालय परिवार कटनी की तरफ से दायर की गयी याचिका कहा गया था कि गैर अनुदान प्राप्त विद्यालयों में कुल छात्र संख्या के 25 प्रतिशत छात्रों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जा रही है, छात्रों की शिक्षा में होने वाले व्यय की प्रतिपूर्ति शासन को सत्र के अंत में निर्धारित दर पर भुगतान किये जाने का प्रावधान कानून की धारा 9 के तहत है. शासन द्वारा वर्ष 2017 से अब तक गैर शासकीय शालाओं को उसका भुगतान नहीं किया है, इस संबंध में उन्होंने सरकार के समक्ष आवेदन भी दिया था, उस पर कोई सुनवाई नहीं हुई.
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि कोविड काल में उक्त राशि नहीं मिलने तथा शालाओं को शैक्षणिक शुल्क के अतिरिक्त अन्य शुल्क सामान्य छात्रों से नहीं लेने के दिशा-निर्देशों के कारण गैर अनुदान प्राप्त अशासकीय शालाएं वित्तीय संकट से जूझ रही हैं. एकलपीठ ने सुनवाई के बाद उक्त आदेश के साथ याचिका का निराकरण कर दिया है, याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता दीपक पंजवानी ने पक्ष रखा.