जबलपुर। न्यायालयों में लंबित आपराधिक मामलों में अभियोजन पक्ष की पैरवी के लिए पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की नियुक्ति से संबंधित संज्ञान याचिका तथा अन्य याचिकाओं की सुनवाई मंगलवार को हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक तथा जस्टिस विजय कुमार शुक्ला ने की. सुनवाई के दौरान कोर्ट मित्र ने बताया कि जिला एवं सत्र न्यायालय में हत्या सहित अन्य संगीन अपराध में मामलों की सुनवाई होती है और साक्ष्य पर दलील के आधार पर न्यायालय निर्णय करता है. जिला एवं सत्र न्यायालय में संविदा में पब्लिक प्रोसिक्यूटर नियुक्त को अवैधानिक बताते हुए कहा कि नियुक्ति के लिए न्यूनतम सात साल का अनुभव भी अनिवार्य नहीं किया गया है. अनुभवहीनता की कमी न्यायिक तंत्र को खोखला कर सकती है. युगलपीठ ने इस संबंध में जवाब मांगते हुए याचिका पर अगली सुनवाई 26 जुलाई को निर्धारित की गयी है.
राज्य सरकार नियमों में कर रही अनदेखी
अधारताल निवासी ज्ञानप्रकाश की तरफ से दायर याचिका में आरोप लगाते हुए कहा गया था कि राज्य सरकार द्वारा नियमों की अनदेखी के चलते डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन के पद पर नियुक्ति नहीं की जा रही, जो अवैधानिक है. इस मामले पर पूर्व में राज्य सरकार द्वारा एक आईएएस की नियुक्ति की इंचार्ज डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन के पद पर किए जाने को भी याचिकाकर्ता ने कटघरे में रखा था.
केस फ्लो मैनेजमेंट रूल्स 2006 का दिया गया हवाला
याचिका में हाईकोर्ट ऑफ मध्यप्रदेश केस फ्लो मैनेजमेंट रूल्स 2006 का हवाला देते हुए कहा गया था कि रिट पिटीशनों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक और नॉर्मल ट्रैक बनाए गए हैं. इसी तरह क्रिमिनल मामलों में फांसी की सजा, रेप और दहेज हत्या जैसे मामलों के लिए एक्सप्रैस ट्रैक, जिन मामलों में आरोपी को जमानत नहीं मिली उसके लिए फास्ट ट्रैक, ऐसे संवेदनशील मामले जिनमें कई लोग प्रभावित हो रहे हों उनके लिए रैपिड ट्रैक, विशेष कानून के तहत आने वाले मुकदमों के लिए ब्रिस्क ट्रैक और शेष सभी सामान्य अपराधों के लिए नॉर्मल ट्रैक बनाए गए हैं.