जबलपुर।कहते हैं कि 'शिक्षा दान महादान' होता है, इससे बढ़कर कोई दान नहीं होता है. फिर असहाय और गरीबों को बिना किसी स्वार्थ और शुल्क के सेवा के रूप में यह दान दिया जाए, उस व्यक्ति की महानता और भी बढ़ जाती है. जबलपुर के दीवान वैसे तो समाज सेवी कार्यों को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहते हैं. लेकिन आज शिक्षक दिवस के मौके पर उनके एक और सराहनीय कार्य से हम आपको रूबरू करवाते हैं. पराग गरीब और असहाय बच्चों को निशुल्क पढ़ाते हैं. उनके पढ़ाए गए बच्चे जीते जागते ह्यूमन कंप्यूटर बन गए हैं. जो बच्चे कल तक स्कूल से भी दूर थे, आज पराग के पास पढ़कर वह पलक झपकते ही गणित के कठिन से कठिन सवाल भी सुलझा देते हैं.
चार साल से ग्वारीघाट पर निशुल्क पढ़ा रहे 'पराग' पराग दीवान समाजसेवा के कार्यों में हमेशा आगे रहते हैं. आए दिन अपने अच्छे कामों के चलते पराग सुर्खियों में रहते हैं. कभी गरीबों को खाना खिलाने, तो कभी कंबल ओढ़ाते कई बार पराग को देखा गया है. मां नर्मदा के घाट पर खुले आसमान के नीचे पराग दीवान फ्री कोचिंग क्लास चलाते हैं. पराग ने बच्चों को मैथमेटिक्स की ट्रिक्स कुछ इस तरह सिखाई है कि वह बड़े से बड़े अंक का स्क्वायर क्यूब पलक झपकते निकाल लेते हैं. विज्ञान, भूगोल के सवालों के जवाब कंठस्थ हो चुके हैं. जबलपुर में कॉम्पिटिटिव एग्जाम की कोचिंग चलाने वाले पराग का उद्देश्य है कि कोई भी बच्चा गरीबी या सुविधा के अभाव में पढ़ाई से वंचित न हो.
खुला आसमान और नर्मदाघाट बनी पाठशाला
खुले आसमान में नर्मदा के घाट पर दीवान अपनी पाठशाला चलाते हैं. यहां गरीब बच्चों को निशुल्क पढ़ाया जाता है, ताकि कोई भी बच्चा पैसों के आभाव में पढ़ाई से वंचित न हो सके. पराग रोज शाम को इसी तरह गरीब बच्चों को पढ़ाकर उन्हें जिंदगी में बड़े लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. पराग की इस घाटशाला में अब 120 बच्चे निशुल्क पढ़ाई करते हैं. पराग बताते हैं कि इस निशुल्क क्लास की शुरूआत 2016 में की गई थी. पराग की मां के देहांत के बाद जब वह नर्मदा के घाट पर आए थे, तब उन्होंने इन बच्चों को देखा था. तभी से उन्होंने यहां निशुल्क पढ़ाना शुरू कर दिया.
अठखेलियां करने में गुजरता था दिन
पराग के पास पढ़ने वाले छात्र सनी ने बताया कि वह नर्मदा किनारे ग्वारीघाट पर फूल, दीये, नारियल की दुकान लगाते थे. उनका पूरा दिन नर्मदा में अठखेलियां करने में गुजरता था. इन बच्चों को घाट पर आकर पराग दीवान ने अपने पास बुलाया और उन्हें कुछ ना कुछ गिफ्ट देकर अपनी मुफ्त क्लास में बैठाने के लिए मना लिया. अब इन बच्चों के दिल में शिक्षा की अलख कुछ इस तरह जल उठी है कि वह बड़े होकर बड़े से बड़ा अधिकारी बनना चाहते हैं.
पराग मुफ्त शिक्षा को दान नहीं अपना कर्तव्य मानते हैं. पराग का स्वार्थ बस इतना है कि वह चाहते हैं कि गरीबों के बच्चे इस तरह पढ़े कि आगे चलकर आईएएस, आईपीएस बनकर देश का नाम रोशन करें. नर्मदा किनारे चलकाकर क्लास को प्रचार की चकाचौंध से दूर रखने वालों में पराग असल मायनों मे सच्चे शिक्षक है. जिनका स्वार्थ गरीबों के बच्चों की बेहतरी में ही छिपा हुआ है. पराग जैसे शिक्षकों की बदौलत ही आज भी शिक्षकों का मान, भगवान से भी ऊपर बना हुआ है.