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नदी में फेंकी जाने वाली पूजा सामग्री से बनेगा नेचुरल गुलाल, फिर से अविरल हो सकेगी गंगा - Bio Design Innovation Center

कोरोना काल (corona period) में नदी की पवित्र और साफ जलधारा को देख लोग आश्चर्यचकित रह गये, हालांकि लोगों को इस साफ जल धारा के पीछे का कारण भी बखूबी पता है, उन्हें पता है कि अगर नदी में कोई बाहरी सामग्री और कूड़ा करकट न डाला जाए तो नदी हमेशा के लिए साफ हो जाएंगी. लेकिन लोगों की इस आदत से उनका पीछा छुड़ाने के लिए 'बायो डिजाइन एंड इनोवेशन सेंटर' ने एक सराहनिया कार्य किया है. जानने के लिए पढ़ें ये रिपोर्ट....

पूजा सामग्री से बनेगा नेचुरल गुलाल
पूजा सामग्री से बनेगा नेचुरल गुलाल

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Published : Sep 28, 2021, 7:10 AM IST

Updated : Sep 28, 2021, 8:54 AM IST

जबलपुर। नर्मदा नदी (Narmada river में सबसे ज्यादा गंदगी त्योहार (Festival) के दौरान होती है. दरअसल, नदी की पवित्रता (purity) ही उसकी सबसे बड़ी दुश्मन बन जाती है. हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि पवित्र नदियों के किनारे तीज त्योहार मनाने चाहिए. साथ ही यज्ञ हवन करके पूजा की सामग्री को नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए. लोगों की यही मान्यता नदियों के लिए घातक साबित हो रही है. प्रशासन के मना करने के बाद भी लोग बड़ी तादाद में पूजा सामग्री का बचा हुआ सामान खास तौर पर फूल और हवन की राख नदी में प्रवाहित कर देते हैं.

जबलपुर न्यूज


बायो डिजाइन एंड इनोवेशन सेंटर ने किया ये कार्य
शहर के रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय (Rani Durgavati Vishwavidyalaya) में केंद्र सरकार (central govt) के शिक्षा मंत्रालय (Ministry of Education) का एक अनोखा आयाम है, जिसे बायो डिजाइन एंड इनोवेशन सेंटर (Bio Design Innovation Center) के नाम से जाना जाता है. यह सेंटर नए विचारों के लिए प्रयोग करके उत्पाद तक ले जाने का काम करता है. इसी सेंटर के छात्रों को संस्थान के एचओडी डॉ एसएस संधू ने यह टास्क दिया था कि पूजा के बाद बचा हुआ सामान नर्मदा नदी को प्रदूषित ना कर सके. इसके लिए कोई ऐसा उत्पाद बनाएं जिससे नदी की गंदगी बच सके और बचे हुए सामान से बना हुआ उत्पाद रोजगार का साधन भी बन सके.

फूलों से बनाया गया नेचुरल गुलाल
छात्र छात्राओं ने देखा की त्योहार के बाद लोग बड़ी तादाद में नदी किनारे फूल छोड़ कर चले जाते हैं. छात्र-छात्राओं ने इन फूलों से नेचुरल गुलाल बनाया है. इसमें गेंदा फूल और पीला फूल से गुलाबी और इसी तरह से प्राकृतिक रंगों से मिलकर अलग-अलग प्रकार के गुलाल बनाए हैं. जो पूरी तरह से प्राकृतिक हैं और इनका शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता.

चर्चा में हैं चारकोल का साबुन और क्रीम
वहीं इन दिनों चारकोल का साबुन और क्रीम बहुत चर्चा में है. डॉ एसएस संधू का कहना है की हवन के बाद और नदी किनारे फेंके हुए नारियल से जो राख बजती है उसमें बारी चारकोल होता है. इसको बड़े ही सामान्य तरीके से सॉप बेस में मिलाकर साबुन बनाया जा सकता है. केवल चारकोल ही नहीं यहां छात्र छात्राओं ने नींबू के छिलकों हल्दी नीम ऑयल जैसे कई साबुन बनाए हैं.

जरूरत है उत्पादों को बाजार में लाने की
सेंटर के प्रमुख डॉ एसएस संधू का कहना है कि जल्दी ही या तो किसी निजी कारोबारी के जरिए या फिर सरकार जिसे कहे उसे यह शोध दिए जा सकते हैं. इन उत्पादों को बेचकर लोगों को रोजगार मिलेगा बल्कि नदी की पवित्रता भी बच जाएगी.

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विभाग ने 4 पेटेंट कराए फाइल
केंद्र सरकार का यह विभाग ज्ञान को धरातल पर उतारने का एक बड़ा जरिया बन सकता है. रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के अलावा भारत में ऐसे 22 सेंटर बनाए गए हैं, जिनमें ज्यादातर आईआईटी में है. केवल जबलपुर में यह रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में है और विभाग ने 4 पेटेंट भी फाइल करवाए हैं जो जल्द ही यूनिवर्सिटी को मिल जाएंगे.

Last Updated : Sep 28, 2021, 8:54 AM IST

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