जबलपुर।ग्वालियर के बिरला नगर में सीवर चैंबर की सफाई के दौरान जहरीली गैस का रिसाव होने से दो श्रमिकों की मौत हो गयी थी. हाईकोर्ट ने घटना को संज्ञान में लेते हुए मामले की सुनवाई जनहित याचिका के रूप में करने के आदेश दिये थे. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. याचिका पर अगली सुनवाई 4 सप्ताह बाद निर्धारित की गयी है. हाईकोर्ट के निर्देश पर दर्ज जनहित याचिका में कहा गया था कि यह एक दिल दहलाने वाली घटना है. सीवर चैंबर साफ करने गए दो मजदूर जहरीली गैस के रिसाव की चपेट में आ गए. बचाव के प्रयास के बावजूद भी मदद पहुॅचने से पहले उनकी मौत हो गयी थी. इसी तरह की घटनाएं मध्य प्रदेश में कई जगहों पर हुई हैं. गरीब श्रमिकों को गटर या सीवर लाइन में प्रवेश करने के लिए भेजते समय उचित उपकरण उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं. इस बात पर जोर देने की जरूरत नहीं है कि ऐसे वर्कर समाज के निचले तबके से आते हैं.
मैला ढोना प्रतिबंधित: मानवीय गरिमा एक अपरिहार्य अधिकार है जो भारत के संविधान के अनुसार जीवन के मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है. गरिमा का तात्पर्य समान व्यवहार और कानून की सुरक्षा तथा समान सम्मान से है. यह सर्वसम्मति से स्वीकृत अधिकार है, जो मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 1, 22 और 23 द्वारा मान्य है. भारत में कानून के तहत हाथ से मैला ढोना प्रतिबंधित है. पिछले कुछ वर्षों में मैनुअल स्केवेंजरों के रोजगार के संबंध में कई कानून आए हैं लेकिन उनके कार्यान्वयन में समस्याएं हैं. नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 (संशोधित) जो 1977 में लागू हुआ, ने अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया और इसे एक संज्ञेय और गैर-शमनीय अपराध बना दिया. गरीब शहरी घरेलू शुष्क शौचालयों को फ्लश शौचालयों में बदलने के लिए एकीकृत कम लागत वाली स्वच्छता योजनाओं को अधिकृत किया गया.
मैनुअल स्कैवेंजर्स: मैनुअल स्कैवेंजर्स का रोजगार और शुष्क शौचालयों का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 इस अधिनियम ने मैनुअल स्कैवेंजर्स के रोजगार पर प्रतिबंध लगा दिया और इसे एक संज्ञेय अपराध बना दिया, जिससे स्वच्छता शौचालयों को बनाए रखना राज्य, नागरिकों और संगठनों की जिम्मेदारी बन गई. मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम की धारा 7 में किसी भी व्यक्ति, स्थानीय प्राधिकारी या एजेंसी द्वारा सीवर या सेप्टिक टैंक की खतरनाक सफाई के लिए किसी व्यक्ति की नियुक्ति/रोज़गार पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है. धारा 9 में धारा 7 के उल्लंघन के लिए दंड का प्रावधान है और इसमें कहा गया है कि पहली बार उल्लंघन करने पर अधिकतम दो साल की जेल की सजा तथा दो लाख रूपये तक के जुर्मान का प्रावधान है. आगे के उल्लंघन के लिए कारावास की सजा दी जाएगी. पांच लाख रुपये तक के जुर्माने के साथ या उसके बिना अधिकतम पांच साल की सजा.
न्यायालय का निर्देश: सर्वोच्च न्यायालय ने दायर याचिका की सुनवाई करते हुए इस संबंध में केंद्र शासित प्रदेशों और राज्य सरकारों को मैनुअल स्कैवेंजर्स के रोजगार और शुष्क शौचालयों के निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 को सख्ती से लागू करने के संबंध में आदेश जारी किये थे. सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में मैनुअल स्कैवेंजिंग में नियोजित लोगों के मुआवजे और पुनर्वास के लिए सरकार को मुआवजा देने का आदेश दिया था. सर्वोच्च न्यायालय ने 1993 से हाथ से मैला ढोने का काम करते हुए अपनी जान गंवाने वाले प्रत्येक व्यक्ति के परिवार के सदस्यों को 10 लाख देने के आदेश जारी किए थे.