जबलपुर। चुनाव का समय आते ही चर्चा तेज हो जाती है कि किस जाति या धर्म के लोग कहां ज्यादा हैं. उसी के आधार पर टिकट दी जाती है. समाज को जाति और धर्म के आधार पर बांट दिया जाता है लेकिन जबलपुर का इतिहास जातिगत राजनीति को ठुकराता हुआ नजर आता है. जबलपुर कुछ मामलों में मिनी भारत है. जबलपुर में जातिगत राजनीति कभी सफल नहीं हुई. इसकी एक बड़ी वजह जबलपुर का महानगरी संस्कृति है. जबलपुर ने समय-समय पर ऐसे लोगों को नेतृत्व दिया, जिनकी जातिगत संख्या बहुत कम थी. MP Chunav Cast Politics
सिंधी समुदाय को नेतृत्व :एक समय ऐसा भी था, जब शहर की तीन विधानसभा सीटों पर अल्पसंख्यक समाज के प्रत्याशी ने चुनाव जीतकर जबलपुर का प्रतिनिधित्व विधानसभा में किया. जबलपुर की कैंट विधानसभा से ईश्वर दास रोहणी चुनाव जीते थे. ईश्वर दास रोहणी सिंधी समाज के थे. उनका तो जन्म ही पाकिस्तान में हुआ था लेकिन उन्होंने जबलपुर में ऐसी राजनीतिक पकड़ बनाई कि उनके जाने के बाद उनके बेटे अशोक रोहणी आज भी कैंट विधानसभा के सबसे दमदार प्रत्याशी हैं और भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें फिर से टिकट दिया है. जबकि जबलपुर में सिंधी समाज की संख्या इतनी नहीं है कि वह राजनीतिक निर्णय कर सकें. MP Chunav Cast Politics
जैन समुदाय को भी अवसर :2018 तक जबलपुर की मध्य विधानसभा से शरद जैन चुनाव जीत रहे थे. वह इसके पहले दो चुनाव जीत चुके थे. जैन अल्पसंख्यक समुदाय है. जबलपुर मध्य विधानसभा में लगभग 30 हजार जैन निवास करते हैं. बेशक यह संख्या कुछ ज्यादा है लेकिन इस विधानसभा क्षेत्र में कुल मिलाकर 2 लाख 10 हजार लोग रहते हैं. इस हिसाब से मात्र 15% जैन ही हैं, लेकिन यह जबलपुर की लोकतांत्रिक समझ है कि यहां जाति को बहुत तरजीह नहीं दी जाती. शरद जैन इस विधानसभा क्षेत्र से लंबे समय तक नेता रहे. हालांकि वह खुद की निष्क्रियता की वजह से चुनाव हारे. उनकी जगह कांग्रेस के विनय सक्सेना, इस विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर आए. विनय सक्सेना कायस्थ हैं लेकिन कायस्थों की संख्या भी इतनी अधिक नहीं है कि वह विनय सक्सेना को चुनाव जीत सकें.
पंजाबी समुदाय से नेता :जबलपुर की पश्चिम विधानसभा में तरुण भनोट खुद पंजाबी हिंदू संगठन के सदस्य हैं. यदि हम तरुण भनोट की जाति के लोगों की संख्या के आधार पर नेतृत्व तय करें तो यह आकलन गलत होगा क्योंकि पंजाबी हिंदू समाज की संख्या इस विधानसभा क्षेत्र में बहुत कम है. वहीं दूसरी तरफ इसी विधानसभा क्षेत्र से लंबे समय तक विधायक रहे हरेंद्र जीत सिंह बब्बू सिख समाज से आते थे, जबकि इस विधानसभा क्षेत्र में सिख समाज की इतनी अधिक तादाद नहीं है कि केवल सिख होने की वजह से उन्हें चुनाव जिताया जा सके. जबलपुर में एक समय अजय नारायण मुसरान सांसद चुने गए थे. जबकि वे कश्मीरी पंडित थे. विवेक तन्खा भी जबलपुर से राजनीति करते रहे हैं. वह आज भी जबलपुर का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन जबलपुर में कश्मीरी पंडितों की संख्या बहुत कम है. ऐसी स्थिति में यदि जाति को आधार बनाकर इन नेताओं ने राजनीति की होती तो यह जबलपुर में सफल नहीं हो पाते.