बक्सवाहा का जंगल नष्ट करने के खिलाफ एनजीटी में रिव्यू पिटिशन जबलपुर। छतरपुर जिले के बक्सवाहा के जंगल में हीरा खदान स्वीकृत की गई है. यहां पर लगभग एक लाख करोड़ के हीरे होने की संभावना जताई जा रही है. इसलिए एक निजी कंपनी को इस खदान से हीरे निकालने के लिए टेंडर दिया गया है. लेकिन इस खदान की वजह से बक्सवाहा का लगभग 900 एकड़ मैं फैला सदियों पुराना जंगल काटना पड़ेगा. इसमें लाखों पेड़ काटे जाएंगे. इसलिए जबलपुर की संस्था नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच ने पहले सरकार से इस बात पर आपत्ति दर्ज की कि सदियों पुराना जंगल सिर्फ पैसे के लिए बर्बाद नहीं करना चाहिए और पेड़ नहीं काटे जाने चाहिए.
382 हेक्टेयर जमीन कंपनी को दी :नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच की बात जब सरकार ने नहीं सुनी तो मंच के कार्यकर्ता नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में पहुंचे. ट्रिब्यूनल से यह मांग की गई कि हीरा खनन के लिए लाखों पेड़ काटना ठीक नहीं है. इसलिए निजी कंपनी को दिया हुआ करार सरकार वापस लें. लेकिन इसके उलट सरकार ने 27 करोड़ 52 लाख रुपये निजी कंपनी से जमा करवा लिए हैं और 382 हेक्टेयर जमीन निजी कंपनी को सौंप दी है. यहां पर रहने वाले आदिवासियों के लिए विस्थापन की प्रक्रिया शुरू हो गई है और किसी भी दिन बक्सवाहा के पेड़ों को काटा जाना शुरू हो जाएगा.
एनजीटी नहीं सुनेगा तो सुप्रीम कोर्ट जाएंगे :सामाजिक संस्था ने जब इस मुद्दे को ग्रीन ट्रिब्यूनल के सामने रखा तो ट्रिब्यूनल ने यह कहते हुए इस याचिका को खारिज कर दिया कि आप बहुत जल्दी ट्रिब्यूनल में आ गए हैं. अभी बक्सवाहा में पेड़ों की कटाई शुरू नहीं हुई है. जबलपुर की सामाजिक संस्था की याचिका को ट्रिब्यूनल ने खारिज कर दिया था. अब दोबारा से नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच इसी मुद्दे पर रिव्यू पिटिशन लगा रहा है. जिसमें मार्गदर्शक मंच का कहना है कि यदि अब कुछ नहीं किया गया तो जंगल बर्बाद हो जाएंगे. इसलिए ट्रिब्यूनल को कोई कड़ा निर्देश देना चाहिए. हालांकि मार्गदर्शक मंच का कहना है कि यदि एनजीटी उनकी मांग को नहीं मानता है तो वे अपनी लड़ाई और आगे तक ले जाएंगे. इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे.
दमोह और बक्सवाह में हीरा खनन परियोजना का विरोध, जंगल बचाने के लिए पेड़ों से चिपके लोग
रोजाना एक पौधा लगाने का क्या मतलब :मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रोज एक पेड़ लगाते हैं लेकिन अभी तक मात्र कुछ सौ पेड़ ही लगा पाए होंगे और यहां पर एक साथ लाखों पेड़ को काटा जाना है. सिर्फ चंद पैसों के लिए प्रकृति की बनाई व्यवस्था को बर्बाद करना समझदारी नहीं है. सरकार को भी इस मामले में सामाजिक संस्था के साथ अपना पक्ष रखना चाहिए और जंगल को बचाने की कोशिश करनी चाहिए. संरक्षक नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डॉ. पीजी नाज पांडे का कहना है कि पेड़ों की रक्षा करना हमारा दायित्व है.