जबलपुर। यूरिया, जिससे आज लगभग भारत में 90 फीसदी किसान खेती करते हैं. 1960 के दशक में भारत के किसान यूरिया के बारे में बहुत कम जानते थे. 1966-67 के दौर में हरित क्रांति की शुरुआत हुई. इससे भारत की कृषि उत्पादन में कई गुना वृद्धि हो गई थी. इस तेजी का मुख्य कारण था खेती में यूरिया का इस्तेमाल. तब से अब तक फसल का प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए यूरिया की खपत बढ़ती ही जा रही है. ऐसे में एक महिला किसान ने जैविक खेती को अपनाकर खेती का नजरिया ही बदल दिया है.
जबलपुर की 'मिल्क वुमन'
जबलपुर में रहने वाली वेटरनरी डॉक्टर स्वाति पाठक ने जैविक खेती को अपना जुनून बना लिया है. इस जुनून से महिला ने कृषि के क्षेत्र में नए रोजगार के अवसर पैदा किए हैं. डॉ. स्वाति के इस जुनून से आस पास के किसान भी जागरुक हुए हैं. वे भी अब यूरिया को छोड़ जैविक खेती में हाथ आजमा रहे हैं. क्षेत्र में सामान्य दूध की कीमत 56 रुपए लीटर है, लेकिन डॉ. स्वाति पाठक 90 रुपए लीटर में दूध बेचती हैं . अच्छी गुणवत्ता का होने के कारण उनका दूध आसानी से बिक भी जाता है. उनकी गाय का घी ढाई हजार रुपए किलो तक बिक जाता है. स्वाति पाठक ने जैविक खेती की शुरुआत भले ही दूध से की थी, लेकिन आज स्वाति जैविक सब्जी और अनाज भी उगा रही हैं. बाजार में इसकी डिमांड भी जबरदस्त है.
- गिर गाय का जैविक दूध
स्वाति पाठक खुद एक वेटरनरी डॉक्टर हैं. उनके पति फौज में हैं. स्वाति पाठक ने जबलपुर से 10 किलोमीटर दूर गिर नस्ल की गायों का एक फॉर्म बनाया है. इसमें लगभग 100 गिर नस्ल की गायें हैं. फॉर्म में जैविक तरीके से दूध का उत्पादन होता है. इन्हीं मवेशियों के गोबर और गोमूत्र से जानवरों के खाने के लिए चारा तैयार किया जाता है. इससे बनने का दूध पूरी तरह से जैविक होता है. स्वाति पाठक इसे सोशल मीडिया के जरिए जबलपुर की हाई क्लास सोसाइटी में बेचती हैं. स्वाति का कहना है, कि लोगों को समझाने में समय जरूर लगता है. एक बार जब लोग समझ जाते हैं तो उन्हें 90 रुपए लीटर में भी दूध सस्ता लगता है. धीरे-धीरे लोग इस बात से इत्तेफाक रखने लगे हैं कि जैविक दूध दवा का काम करता है. स्वाति पाठक इन गायों से निकले दूध से घी भी तैयार करती हैं. ये घी भी बाजार में मिलने वाले दूसरे घी से काफी महंगा ढाई हजार रुपए प्रति किलो बिकता है.
- जैविक सब्जी और जैविक अनाज