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Published : Mar 23, 2021, 9:54 AM IST

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जबलपुर शहर में मुस्लिम समुदाय के धर्मगुरुओं की एक बैठक आयोजित हुई, जिसमें शादी में होने वाले फिजुलखर्ची पर चर्चा की गई.

meeting of religious leaders of the Muslim community
मुस्लिम समुदाय के धर्मगुरुओं की बैठक

जबलपुर। शहर के रानीताल ईदगाह में मुस्लिम समुदाय के धर्मगुरुओं की एक बैठक आयोजित हुई, जिसमें समाज में व्याप्त नशा, शराब सहित तमाम खामियों और कमियों को दूर करने पर विचार-विमर्श किया गया. इस बैठक में सबसे ज्यादा चर्चा शादी और अन्य पारिवारिक कार्यक्रमों में होने वाले खर्चों पर रही.

दरअसल, शरिया कानून के तहत शादी सादगी के साथ किए जाने चाहिए, जिसमें परिवार के सदस्य मौजूद रहे. दोनों पक्ष सहमति से परिजनों के साथ सहभोज कर विवाह संपन्न कराए, लेकिन बीते सालों में विवाह में सामूहिक भोज, बैंड बाजा, डीजे और अन्य चलन शुरू हो गए, जिसमें लाखों रुपए का खर्च होता है.

मुस्लिम धर्मगुरुओं का मानना है कि इन सबके बिना भी शादियां हो सकती हैं. ऐसे में फिजूलखर्च न करके परिवार की संपत्ति को बचाया जा सकता है. नव विवाहित जोड़े के भविष्य के लिए उस पैसे का उपयोग किया जा सकता है. कई बार दूसरे से काॅम्पटीशन करने के चक्कर में लोग कर्ज लेकर शादियां धूमधाम से करते हैं. कर्ज के बोझ के तले परिवार का मुखिया दब जाता है, जिसका पारिवारिक स्थिति पर काफी बुरा असर पड़ता है.

मुस्लिम समुदाय के धर्मगुरुओं की बैठक


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आर्थिक हालत ठीक नहीं
मुस्लिम धर्मगुरुओं का कहना है कि नोटबंदी और कोरोना वायरस की वजह से हालात और भी ज्यादा बुरे हैं. लोगों की हैसियत अदिक खर्च करने की नहीं है. बैठक में अभी सुझाव लिए गए हैं, जिन पर विचार किया जा रहा है. जल्द ही मुफ्ती ए आजम इस संबंध में पूरी गाइडलाइन जारी करेंगे.

शरिया कानून के तहत बैंड-बाजा गलत
शरिया कानून के तहत बैंड बाजा महिला-पुरूषों का नाचना-गाना वर्जित है. यानी इसे गलत माना गया है. बावजूद इसके लोग आधुनिकता और दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा के चक्कर में शादी में फिजूलखर्ची कर रहे हैं. शादी को जलसे की तरह मनाया जा रहा है.

मुस्लिम धर्मगुरुओं का कहना है कि यह शरिया कानून के तहत गलत है. बेशक इससे फिजूलखर्ची बचेगी, लेकिन शादी की वजह से कई लोगों को रोजगार भी मिलता है.

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