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मध्यप्रदेश धर्मांतरण मामले में बिशप और नन को मिली अग्रिम जमानत, जबलपुर हाईकोर्ट ने कहा- गैर व्यक्ति नहीं कर सकता शिकायत

मध्यप्रदेश में धर्मांतरण कराने के मामले में बिशप और नन को अग्रिम जमानत मिली है. जबलपुर हाईकोर्ट की एकलपीठ ने कहा कि "गैर व्यक्ति की शिकायत पर प्रकरण दर्ज करना पुलिस के क्षेत्राधिकार में नहीं है."

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मध्यप्रदेश धर्मांतरण मामले में बिशप और नन को मिली अग्रिम जमानत

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Published : Jun 24, 2023, 8:39 PM IST

जबलपुर(PTI)।मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने एक बाल गृह में बच्चों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के प्रयास के आरोपी जबलपुर डियोसिस के एक कैथोलिक बिशप और कटनी में संचालित आशा किरण बाल गृह में पदस्थ नन को अग्रिम जमानत दे दी है. इन दोनों के खिलाफ राज्य के कटनी जिले में उनके द्वारा संचालित एक बाल गृह में बच्चों का धर्मांतरण कराने का आरोप है. हाईकोर्ट जस्टिस विशाल धगट ने अपने आदेश में कहा कि "गैर व्यक्ति की शिकायत पर प्रकरण दर्ज करना पुलिस के क्षेत्राधिकार में नहीं है."

धर्मांतरण मामले में बिशप को मिली जमानत: जबलपुर डियोसिस के बिशप जेराल्ड अल्मीडा और नन लीजी जोसेफ की तरफ से कटनी जिले के माधवनगर पुलिस थाने में मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत दर्ज अपराधिक प्रकरण में अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी. याचिका में कहा गया था कि जबलपुर डियोसिस के अंतर्गत कटनी जिले में आशा किरण बाल गृह का संचालन किया जाता है. रेलवे विभाग द्वारा बाल गृह संचालित करने के लिए भूमि और बिल्डिंग प्रदान की गई है. शिकायतकर्ता प्रियंक काननूगो 29 मई को निरीक्षण के लिए बाल गृह पहुंचे थे, उनकी तरफ से थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई गई कि बाल गृह में बच्चों को जबरन ईसाई प्रार्थना करवाई जाती है. बाइबल पढ़ाई जाती है और चर्च जाने को मजबूर किया जाता है और दिवाली मनाने नहीं दी जाती है. इसके बाद इन दोनों के खिलाफ मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2021 की धारा 3 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी.

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गैर व्यक्ति नहीं कर सकता धर्मांतरण की शिकायत:याचिका में कहा गया था कि देखभाल संस्थान का निरीक्षण प्रावधान धारा 54 के तहत है. निरीक्षण दल में 3 लोग होना चाहिए, जिसमें से 1 महिला और 1 चिकित्सक अधिकारी होना चाहिए. मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के तहत धर्मांतरण की शिकायत लिखित में होनी चाहिए. शिकायत पीड़ित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई-बहन कर सकते हैं. इसके अलावा न्यायालय की अनुमति से जिनके बीच खून का रिश्ता हो, शादी हो, गोद लेने वाला या संरक्षक कर सकता है. एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि देखभाल संस्था में बच्चों को धार्मिंक शिक्षा नहीं बल्कि आधुनिक शिक्षा प्रदान की जाए. लिखित शिकायत नहीं देने पर धर्मांतरण का प्रकरण दर्ज करना पुलिस के अधिकार क्षेत्र में नहीं है. कोर्ट ने अग्रिम जमानत का लाभ दिया है.

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