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लोकायुक्त कोर्ट ने भू-अर्जन अधिकारी को 5 साल कैद के साथ 1.29 करोड़ लगाया जुर्माना

लोकायुक्त अदालत ने जबलपुर विकास प्राधिकरण के भू अर्जन अधिकारी जीएन सिंह के खिलाफ बड़ा फैसला सुनाया है.

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Published : Jun 29, 2019, 9:55 PM IST

भू-अर्जन अधिकारी, जीएन सिंह

जबलपुर। लोकायुक्त अदालत ने जबलपुर विकास प्राधिकरण के भू अर्जन अधिकारी जीएन सिंह के खिलाफ बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने जीएन सिंह पर एक करोड़ 29 लाख रुपए का जुर्माने के साथ 5 साल की सजा सुनाई है.


कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा, अगर जुर्माने की राशि नहीं भरते हैं तो उन्हें 2 साल जेल में ज्यादा बिताने पड़ेंगे. उनके संपत्ति की सार्वजनिक नीलामी करके रकम शासन के खाते में जमा करने का आदेश दिया है. लोकायुक्त अदालत ने पहली बार किसी पर इतना बड़ा जुर्माना लगाया है. प्राधिकरण के 2011 में भू अर्जन अधिकारी रहे जेएन सिंह के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति होने की शिकायत दर्ज कराई गई थी.


लोकायुक्त ने इस शिकायत पर जीएन सिंह के जबलपुर पोली पाथर के घर में छापा मारा था. उस समय लोकायुक्त पुलिस ने बड़ी मात्रा में संपत्ति के कागजात जप्त किए थे. इन दस्तावेजों के आधार पर जीएन सिंह की पूरी तनख्वाह और दूसरी कमाइयां मिलाने के बाद भी उनके पास जो संपत्ति मिली है. वह उनकी कुल कमाई से एक करोड़ 29 लाख ज्यादा है. वहीं पैसे उन्हें जुर्माने के बतौर भरना होगा.

भू-अर्जन अधिकारी को 5 साल की कैद


साथ ही उनकी जितनी भी एफडी है, उनका पैसा सरकारी खजाने में जमा किया जाएगा. साथ ही एलआईसी में जो पैसा जमा है वह भी सरकारी खजाने में जमा होगा. इस बाबत कोर्ट ने बैंक मैनेजर और एलआईसी के मैनेजर को चिट्ठी लिखने की बात कही है. जेएन सिंह के प्लाटों को सार्वजनिक नीलामी करके भेजा जाएगा और इस पैसे को भी सरकारी खजाने में जमा किया जाएगा.

ऊंचे रसूख का अधिकारी था जीएन सिंह
जीएन सिंह जबलपुर विकास प्राधिकरण में लंबे समय तक भू अर्जन अधिकारी रहे हैं. इस दौरान जबलपुर विकास प्राधिकरण में उन्होंने बहुत भ्रष्टाचार किया. जीएन सिंह ऊंची पहुंच वाला अधिकारी था, इसलिए लोकायुक्त का छापा पड़ने के बाद भी उसे प्रमोशन मिला. वह इंदौर विकास प्राधिकरण का सीओ बन गया. लोकायुक्त को किसी भी सरकारी अधिकारी के खिलाफ चालान पेश करने के पहले सरकार से स्वीकृति लेनी होती है. इस मामले में भी जीएन सिंह की ऊंची पहुंच के चलते विभाग ने जीएन सिंह के खिलाफ मुकदमा चलाने की स्वीकृति नहीं दी. इस मामले को मध्यप्रदेश सरकार की कैबिनेट में रखा गया और मुख्यमंत्री की अनुमति के बाद इस अधिकारी के खिलाफ चालान पेश हो सका.

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