जबलपुर।जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru Agricultural University) देश के कुछ चुनिंदा कृषि विश्वविद्यालयों में से एक है. लेकिन अब ऐसा लगता है कि यह विश्वविद्यालय बंद हो जाएगा. पिछले कुछ सालों में सरकार ने इस विश्वविद्यालय की ओर ध्यान नहीं दिया है. सरकार की उदासीनता (Apathy of Government) के कारण विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों को ना तो सातवां वेतनमान (7th Pay Scale) की लाभ मिला है और ना ही विश्वविद्यालय में प्राध्यापकों की भर्ती हुई है. प्रध्यापकों का कहना है कि विश्वविद्यालय की शुरुआत में एक हजार से ज्यादा प्रध्यापक थे, लेकिन वर्तमान स्थिति में केवल 250 ही रह गए है. यदि सरकार यूं ही उदासीन बनी रही, तो एक दिन यह विश्वविद्यालय बंद हो जाएगा.
विश्वविद्यालय में नई वैज्ञानिकों की भर्ती बंद
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के प्रध्यापकों का कहना है कि यूनिवर्सिटी की स्थापना के समय एक समय एक हजार के लगभग कृषि वैज्ञानिक 9Agricultural Scientist) हुआ करते थे. अब इनकी संख्या मात्र 250 बची है. इनमें से 70 इसी साल रिटायर भी हो जाएंगे. कुछ 2025 में रिटायर हो जाएंगे. 2025 में यूनिवर्सिटी में कुल 100 वैज्ञानिक बचेंगे. लेकि सरकार रिटायर वैज्ञानिकों की जगह नई भर्ती नहीं कर रही है. यदि सरकार यूं ही उदासीन बनी रही, तो एक दिन यह विश्वविद्यालय बंद हो जाएगा.
प्राध्यापकों को नहींं मिला सातवां वेतनमान
प्रध्यापकों का कहना है कि राज्य सरकार को कई बार कृषि कर्मण अवार्ड (Krishi Karman Award) मिला है. इसमें कृषि वैज्ञानिकों की भूमिका सबसे बड़ी है. यदि उन्होंने बाजार में सही किस्म के खाद बीज उपलब्ध नहीं करवाएं होते तो उत्पादन नहीं बढ़ सकता था. सरकार ने अवार्ड तो ले लिया, लेकिन जिन कृषि वैज्ञानिकों की वजह से सरकार को प्रसिद्धि मिली उन वैज्ञानिकों को सरकार सातवां वेतनमान में नहीं दे पाई. जबकि अन्य कॉलेजों के प्रोफेसरों को सातवां वेतनमान दिया जा रहा है.
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