जबलपुर। बीते 30 सालों से जबलपुर में प्रैक्टिस कर रहे डॉ. प्रदीप अरोड़ा का दावा है कि कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते संक्रमण की एक बड़ी वजह सरकार की गाइडलाइन है. सरकार कोरोना मरीजों के इलाज के लिए एक गाइडलाइन जारी करती है. जिसमें उन दवाओं का जिक्र होता है, जो संक्रमित मरीजों को और संदिग्ध मरीजों को दी जाती हैं. लेकिन डॉक्टर प्रदीप अरोड़ा का कहना है कि सरकार एंटीकोगुलेंट और एंटी इनफैमिलीट्री दवा इस समय पर नहीं दे रही है. इसकी वजह से कोरोना वायरस के संक्रमित मरीजों की हालत खराब हो रही है.
- एंटीकोगुलेंट दवाओं से होगा ये फायदा
डॉ. प्रदीप अरोड़ा का कहना है कि जब वायरस शरीर में फेफड़ों के जरिए पहुंचता है, तो शरीर वायरस के खिलाफ लड़ने की तैयारी करने लगता है, इसकी वजह से फेफड़ों में सूजन आ जाती है, इसी सूजन की वजह से फेफड़े में थक्का जमना शुरू हो जाता है. एंटीकोगुलेंट दवाइयां थक्का जमने की प्रक्रिया को रोकती है और इसकी वजह से फेफड़ों में सूजन नहीं आती. ऑक्सीजन शरीर को मिलती रहती है और यदि समय पर यह दवाएं शुरू कर दी जाएं, तो ज्यादातर मरीजों को अस्पताल ले जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. यदि फेफड़े ऑक्सीजन लेते रहेंगे तो ना तो मरीज गंभीर होंगे और ना ही उनकी मौत होगी. इसी तरीके से एंटी इनफैमिलीट्री दवाओं के बारे में भी डॉ. अरोड़ा का कहना है कि इन दवाओं को देने के बारे में अलग-अलग राय हैं. वायरस के मामले में कुछ लोग तीसरे दिन और कुछ लोग सातवें दिन इन दवाओं को संक्रमित मरीज को देने की अनुशंसा करते हैं. इन दवाओं के असर से शरीर मजबूत होता है, फिर मरीज वायरस के खिलाफ लड़ पाता है.
- सरकारी गाइडलाइन में नहीं है यह दवाएं
प्रदीप अरोड़ा का कहना है कि गाइडलाइन में इस बात का जिक्र नहीं है कि कोविड-19 से संक्रमित मरीजों को यह दवाएं दी जाएं. जबकि कुछ डॉक्टर जो निजी प्रैक्टिस कर रहे हैं. इन दवाओं का इस्तेमाल करके लोगों को ठीक कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने अपनी गाइडलाइन में इन दवाओं का जिक्र क्यों नहीं किया? यह एक सवाल खड़ा करता है. इसके पीछे सरकार की क्या मंशा है, सरकार सरकारी चिकित्सालयों में इसको उपलब्ध क्यों नहीं करवा रही है?
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