जबलपुर का वर्धा घाट जहां कभी भी शुरू हो जाती है गोलियों की बरसात, फायरिंग रेंज से निकली गोली युवक के हाथ में धंसी - जबलपुर में युवक को लगी गोली
Jabalpur Wardha Ghat Firing: जबलपुर के वर्धा घाट में फायरिंग रेंज होने के चलते किसी भी समय गोलियों की बारिश शुरु हो जाती है. जिसके चलते यहां के लोग डर के साए में अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं. इसी सिलसिले में फायरिंग में एक युवक बुरी तरह घायल हो गया. एक गोली उसके हाथ में लगी, जबकि दूसरी गोली कान के पास गुजर गई.
जबलपुर।वर्धा घाट में पुलिस की फायरिंग रेंज नजदीक होने के चलते एक गांव सजा भुगत रहा है. इस गांव में कभी भी बंदूक की गोलियों की बारिश शुरू हो जाती है. अक्सर यह बारिश ग्रामीणों को घायल करके जाती है. शुक्रवार को दिलीप बेन अपने घर के बरामदे में खड़े हुए थे तभी उनको अचानक हाथ में गोली लगी और इसके पहले कि वह संभाल पाए दूसरी गोली उनके कान के पास से होकर गुजरी. पीड़ित का इलाज जबलपुर मेडिकल कॉलेज में चल रहा है.
दिलीप बेन को लगी गोली:जबलपुर के खमरिया थाने के पास कैलाश धाम है. इसके पीछे वर्धा घाट नाम का एक गांव है, यहां पर्ट नदी है. पर्ट नदी के ठीक बाजू में यह गांव बसा हुआ है. इस गांव के ठीक पीछे फायरिंग रेंज है जहां पुलिस और सेना के जवान फायरिंग की प्रैक्टिस करते हैं और कई बार फायरिंग रेंज से गोलियां वर्धा घाट तक पहुंच जाती हैं. शुक्रवार को भी कुछ ऐसा ही हुआ, जब दिलीप अपने घर के बाहर खड़े हुए थे. इस दौरान उनकी जर्सी को पार करती हुई एक गोली उनके हाथ में धंस गई.
जबलपुर में युवक को लगी गोली
हाथ से बहा खून: वहीं, दूसरी गोली उनके कान के पास से निकली. उनकी पत्नी सोनम भी वहीं खड़ी हुई थी, दोनों इस घटना को बिल्कुल भी समझ नहीं पाए. देखते ही देखते दिलीप के हाथ से खून निकलने लगा. दिलीप ठेकेदारी का काम करते हैं और उन्हें काम पर जाना था लेकिन काम को बीच में ही रोक कर उन्हें सीधे अस्पताल भागना पड़ा परिवार के लोग दिलीप को लेकर जबलपुर के मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचे.
किसने चलाई गोली? दिलीप और उनका परिवार यह बात नहीं समझ पा रहा था कि आखिर उन्हें गोली मारी किसने. क्योंकि फायरिंग रेंज वहां से थोड़ी दूरी पर है और किसी को अंदाज नहीं है कि आखिर गोली किसने चलाई. काफी ज्यादा जद्दोजहद के बाद डॉक्टर ने उनका इलाज शुरू किया. दिलीप को चार टांके आए हैं. यह तो गनीमत है की गोली उनके हाथ पर ही लगी. यदि थोड़ी इधर-उधर लग जाती तो लेने के देने पड़ सकते थे.
फायरिंग रेंज पुरानी, बाद में बसा गांव: इस मामले में खमरिया थाने के प्रभारी सतीश कुमार का कहना है कि ''11 से 15 दिसंबर तक आरपीएफ ने फायरिंग रेंज में प्रैक्टिस करने की सूचना दी थी. संभवत आरपीएफ के जवानों की शूटिंग की प्रैक्टिस के दौरान ही यह गोली दिलीप तक पहुंची होगी.'' इसमें समस्या दोनों तरफ से है, फायरिंग रेंज बहुत पुरानी है और गांव यहां बाद में बसा है. ज्यादातर गांव वाले अपनी पुस्तैनी जमीन पर रह रहे हैं. फायरिंग रेंज की ओर से कोई बड़ी दीवार नहीं बनाई गई है और इसकी वजह से यह गोलियां इस गांव तक पहुंच जाती हैं, फिलहाल दिलीप का परिवार दहशत में है.
फायरिंग रेंज की ओर से कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं: गरीब गांव वालों के सामने समस्या यह है कि वह अपना गांव छोड़कर नहीं जा सकते और फायरिंग रेंज की ओर से कोई सुरक्षा नहीं बढ़ती जा रही. ऐसी स्थिति में उनकी जान हमेशा दांव पर ही लगी रहती है. फायरिंग रेंज के अधिकारी गांव को गलत मानते हैं और गांव के लोग फायरिंग रेंज में गोली चलाने वालों को गलत मानते हैं.