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कारगिल युद्ध में जबलपुर की फैक्ट्रियों का था अहम योगदान, सेना के लिए कर्मचारियों ने किया था दिन-रात काम

कारगिल युद्ध में जबलपुर की ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों का भी अहम योगदान था, विजय दिवस की 21वीं वर्षगांठ पर ईटीवी भारत ने उन सुरक्षा संस्थानों के कर्मचारियों से बात की जिन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान दिन-रात एक कर फैक्ट्रियों में सेना की युद्ध में हथियारों को बनाने के लिए दिन रात एक कर दिया था.

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Published : Jul 24, 2020, 11:02 PM IST

Jabalpur ordance  factories employee
कारगिल युद्ध मे जबलपुर की फैक्ट्रियों का था अहम योगदान

जबलपुर। भारत-पाकिस्तान के बीच जब 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था तो इस युद्ध में सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर केंद्रीय सुरक्षा संस्थानों के कर्मचारियों ने साथ दिया, देश की सभी 41 सुरक्षा संस्थानों में कार्यरत कर्मचारी दिन रात काम में जुटे रहे, यही वजह रही कि भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए.

कारगिल युद्ध के लिए कर दिया था दिन रात एक

जबलपुर का रहा अहम योगदान

जब कारगिल में युद्ध चल रहा था तो देश की सबसे बड़ी केंद्रीय सुरक्षा संस्थान ऑर्डनेंस फैक्ट्री खमरिया, गन कैरिज फैक्ट्री, व्हीकल फैक्ट्री, ग्रे आयरन फॉउंड्री के कर्मचारी सेना के लिए युद्ध सामग्री बनाने में जुट हुए थे. वहां कारगिल में सेना के जवान पाकिस्तान से युद्ध कर रहे हैं तो यहां जबलपुर के फैक्ट्रियों में कार्यरत कर्मचारी दिन-रात सेना के लिए उत्पादन करने में जुटे हुए थे.

कारगिल युद्ध में जबलपुर के केंद्रीय सुरक्षा संस्थान

जिस समय कारगिल युद्ध हुआ था उस समय सेना के लिए गोला बारूद बनाने वाली कर्मचारियों ने अपने अतीत को याद करते हुए बताया कि जो भी आयुध निर्माणी में गोला-बारूद बनते हैं, वह 100 प्रतिशत भरोसेमंद होते हैं, यही वजह है कि सेना हमेशा से ही फैक्ट्री के एम्बुनेशन को पसंद करती है, रिटायर्ड कर्मचारी भैरव प्रसाद ने बताया कि जैसे कारगिल में भारत-पाकिस्तान का युद्ध शुरू हुआ वैसे ही हम कर्मचारियों को गोला बारूद बनाने का टारगेट मिल गया, सभी कर्मचारी उत्पादन में जुट गए, ना दिन देखा और ना ही रात बस सेना के लिए गोला बारूद बनाने का काम शुरू कर दिया. युद्ध भूमि में भारतीय सेना लगातार हमला पाकिस्तान पर कर रही थी तो वहीं सुरक्षा संस्थान के कर्मचारी सेना के लिए माल बनाने में जुटे हुए थे.

कारगिल युद्ध की यादें

पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेंद्र तिवारी ने ईटीवी भारत को बताया कि जबलपुर की सुरक्षा संस्थान सिर्फ कारगिल युद्ध नहीं बल्कि हर युद्ध में अपना बराबर का योगदान देती है. उन्होंने कहा कि जब युद्ध का बिगुल बजा तो सभी फैक्ट्रियों के कर्मचारियों ने ना समय देखा और ना ही ओवरटाइम, बस लगातार काम करते रहे. वहां कारगिल में जंग चल रही थी, इधर सेना के लिए फैक्ट्री-कर्मचारी लगातार उत्पादन कर बॉर्डर तक भेजने का काम कर रहे थे.

बम, वाहन और तोप का होता है निर्माण

जबलपुर में केंद्रीय सुरक्षा संस्थान की चार फैक्ट्रियां हैं, इन फैक्ट्रियों में सेना के लिए बड़े से बड़े बम, वाहन और तोप का निर्माण होता है. ऑर्डनेंस फैक्ट्री खमरिया में तमाम बम, गोला बारूद बनाए जाते हैं, तो वहीं गन कैरिज फैक्ट्री सेना के लिए तोप बनाने का काम करती है. देश की सबसे ताकतवर "धनुष तोप" का निर्माण भी यहीं किया जाता है. इसके अलावा सेना के बड़े-बड़े वाहनों का निर्माण जबलपुर की व्हीकल फैक्ट्री में ही होता है. इतना ही नहीं वाहनों के पार्ट्स और तोप की सामग्री भी जबलपुर की ग्रे आयरन फाउंड्री फैक्ट्री में बनाई जाती है.

कर्मचारी जूझ रहे निगमीकरण से

कारगिल युद्ध सहित कई बड़ी लड़ाइयों में सेना का साथ देने वाले केंद्रीय सुरक्षा संस्थान के कर्मचारी आज संस्थानों के निगमीकरण होने से जूझ रहे हैं. हमेशा सेना और देश के लिए मर मिटने को तैयार कर्मचारियों की फैक्ट्री आज निगमी करण की राह पर चल पड़ी है, ऐसे में यह कर्मचारी आज अपने आप को सरकार द्वारा ठगा सा महसूस कर रहे हैं. बहरहाल कहा जा सकता है कि कारगिल युद्ध में जबलपुर की यह तमाम फैक्ट्रियां एक कवच भारतीय सेना के लिए साबित हुई थी.

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