जबलपुर।मध्य प्रदेश सरकार हिंदी के साहित्यकारों के साथ मजाक कर रही है. साहित्य का सचमुच में काम करने वाले लोगों को नजरअंदाज करके चाटुकारों को साहित्य अकादमी पुरस्कार दिए जा रहे हैं. जबलपुर के आरटीआई एक्टिविस्ट ने जानकारी मिलने के बाद इस बात का खुलासा हुआ है. साहित्य अकादमी पुरस्कारों को दिए जाने के पहले न कोई किताब पढ़ी जाती है, न किसी साहित्यकार के काम-काज को कोई विश्लेषण होता है. सरकार मनमाने तरीके से जिसे चाहती है उसे पुरस्कार दे देती है.
आरटीआई में खुलासा:जबलपुर के आरटीआई एक्टिविस्ट मनीष शर्मा ने बीते दिनों साहित्य अकादमी पुरस्कार देने वाली कमेटी की जानकारियां आरटीआई के तहत निकाली थीं. इसमें सनसनीखेज खुलासा हुआ है कि हिंदी के साथ कैसे सरकार खिलवाड़ कर रही है. मनीष शर्मा ने सरकार से यह जानना चाहा कि साहित्य अकादमी पुरस्कार किस आधार पर दिए जाते हैं, जिन लोगों का चयन साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए किया जाता है उसके लिए कौन सी कमेटी काम करती है. कमेटी में कौन लोग होते हैं. वह कमेटी के लोगों को चयन करने का क्या तरीका है. मनीष शर्मा को राज्य सरकार से मिली जानकारी के अनुसार साहित्य अकादमी पुरस्कार देने के लिए चयनकर्ताओं के चयन की कोई प्रक्रिया नहीं है. सरकार में बैठे मंत्री विधायक जिसे चाहते हैं उसे साहित्य अकादमी पुरस्कार दे देते हैं.