जबलपुर।डिंडोरी जिले से जन्मी गोंड कला अब भारत की एक स्थापित चित्रकला में शामिल हो गई है. आज से मात्र 30 साल पहले इस कला के जानकार कलाकारों को कोई नहीं पहचानता था लेकिन आज इस कला के कलाकारों का बड़ा सम्मान है. बल्कि इस कला के माहिर लोगों को सरकार ने भी देश के कुछ सर्वोच्च सम्मानों से सम्मानित किया है.
क्या है गोंड आर्ट:गोंड जनजाति के लोग मिट्टी के घरों में रहते हैं. प्रकृति प्रेमी आदिवासी लोग अपने घरों को सजाने के लिए मिट्टी और चूने के कलर से घर के बाहर दीवारों पर फूल पत्ती और जंगली जानवरों के चित्र बनाते थे. उस समय तक किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि घरों को सजाने के लिए जो चित्र कलाकार सहज रूप से बना रहे हैं वह कभी एक स्थापित कला का स्वरूप ले लेंगे.और भारत के प्रधानमंत्री के कार्यालय में गोंड आर्ट की तस्वीर लगाई जाएगी.
दीवार से कैनवास पर पहुंची आर्ट:गोंड आदिवासी जबलपुर के आसपास के जंगलों में रहते हैं लेकिन जिस गोंड आर्ट को हम और आप पहचानते हैं उसे पहचान दिलाने का काम जनगढ़ श्याम नाम के एक को आदिवासी कलाकार ने किया था. उन्होंने ही पहली बार इस कला को दीवारों से निकाल कर कैनवास पर जगह दी थी.
पद्मश्री सम्मान से सम्मानित: नरेश श्याम डिंडोरी जिले के पाटनगढ़ के रहने वाले हैं. पाटनगढ़ में ही मूल रूप से गोंड कला का विकास हुआ है. इसकी शुरुआत जनगढ़ श्याम ने की थी. गोंड कला के माहिर कलाकार भज्जू श्याम को 2018 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया था. इसके बाद 2022 में गोंड कला की कलाकार दुर्गा बाई को भी पद्मश्री दिया गया.