जबलपुर। मध्य प्रदेश में किसानों की संख्या लगभग एक करोड़ है. यदि खेती से जुड़ी हुई पूरी अर्थव्यवस्था को देखा जाए तो मध्य प्रदेश में लगभग 80% आबादी खेती से जुड़ी हुई है. जिसमें कृषक, कृषि मजदूर और कृषि आधारित व्यापार में लगे हुए लोग शामिल हैं. लेकिन सरकार किसानों के मुद्दों पर चुप रहती है. इन्हीं मुद्दों को लेकर किसान नेता शिवकुमार कक्का जी किसानों की एक रैली लेकर जबलपुर पहुंचे और उन्होंने मांग की है कि आने वाले चुनाव में दोनों ही पार्टियों किसानों के मुद्दों पर ध्यान दें.
किसानों के लिए ऋण माफी जरूरी है:राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक शिवकुमार कक्का जी ने विधानसभा चुनाव के ठीक पहले यह घोषणा की है कि ''किसानों की कर्ज माफी चाहिए और कर्ज माफी उनके लिए बहुत जरूरी है. क्योंकि बीते समय में डीजल, बिजली खाद और बीज में आई महंगाई की वजह से किसानों की खेती की लागत बहुत अधिक बढ़ गई है. ऐसी स्थिति में यदि एक बार किसानों को कर्ज माफी दी जाती है तो किसानों की अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी.''
कर्ज के चलते डिफाल्टर हो गए किसान: गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने किसानों के ₹2,00,000 तक के कर्ज माफ करने की घोषणा की थी. लेकिन अचानक से सरकार गिर जाने की वजह से यह घोषणा पूरी नहीं हो पाई और अब तक मध्य प्रदेश के लाखों किसान डिफाल्टर हो गए. शिव कुमार कक्का जी ने भारतीय जनता पार्टी सरकार पर आरोप लगाया है कि शिवराज सरकार के दौरान मध्य प्रदेश में किसानों के खुद के जल स्रोतों तक पर टैक्स शुरू हो गया है.
मिनिमम सपोर्ट प्राइस पर खरीदी:किसान नेताओं का कहना है कि ''सरकार को यदि किसानों की अर्थव्यवस्था सुधारना है तो किसानों को मिनिमम सपोर्ट प्राइस मिलने की गारंटी का कानून बनना होगा. हालांकि किसानों ने इसी मांग को लेकर पहले भी आंदोलन किया लेकिन सरकार है इस पर एक मत नहीं हो पाई. वहीं, राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ का आरोप है कि ''सरकार ने कुछ ऐसी कार्य कर रखे हैं जिनके तहत सरकार मिनिमम सपोर्ट प्राइस पर खरीदी धीरे-धीरे घटाएगी. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते में यह शर्त भी है कि एसपी पर सरकारी खरीद पूरी तरह बंद की जाए. राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ का आरोप है कि सरकार धीरे-धीरे एसपी पर खरीदी पूरी तरह बंद करेगी.
मिनिमम सपोर्ट प्राइस का पुनर्मूल्यांकन:शिवकुमार कक्का जी का कहना है कि ''आज मिनिमम सपोर्ट प्राइस के नाम पर जो पैसा किसानों को दिया जा रहा है इसका आकलन सही नहीं है. यदि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर गेहूं का दाम निकल जाए तो वह लगभग ₹5000 प्रति कुंतल होना चाहिए. कुछ इसी तरीके से धन और गन्ने के दाम को लेकर भी किसान संगठन ने आपत्ति जताई है और सरकार से नए शरीर से मिनिमम सपोर्ट प्राइस तय करने की मांग की है.''