जबलपुर। बागेश्वर धाम सरकार पंडित धीरेंद्र शास्त्री के खिलाफ राजस्थान के दो अलग-अलग थानों में FIR दर्ज की गई है. पंडित धीरेंद्र शास्त्री की कानूनी सलाहकार डॉ. रश्मि पाठक का कहना है कि ''यह दोनों ही मामले गैर जमानती हैं और इसमें पंडित धीरेंद्र शास्त्री को जमानत लेनी होगी''. रश्मि पाठक का कहना है कि ''धाराएं गंभीर हैं लेकिन मुकदमा कमजोर है''.
भड़काऊ भाषण का आरोप:डॉ. रश्मि पाठक का कहना है कि 'पहला मामला उदयपुर के हाथीपोल थाने में दर्ज किया गया है. जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 153 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है''. मामले को लेकर यह कहा गया है कि ''पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने हिंदू नव वर्ष के कार्यक्रम के मौके पर एक भड़काऊ भाषण दिया जो समाज के अंदर अशांति पैदा कर सकता है''. एडवोकेट डॉ. रश्मि पाठक का कहना है कि ''पंडित धीरेंद्र शास्त्री पर जो मुकदमा दर्ज किया गया है उसमें भाषण के आगे और पीछे का संदर्भ नहीं दिया गया है और यह मुकदमा एक पुलिस सब इंस्पेक्टर द्वारा दर्ज करवाया गया है. इसलिए मामला बहुत गंभीर नहीं है''. वहीं, हिंदू नव वर्ष के मौके पर इस मंच पर मौजूद दूसरे लोगों ने भी भाषण दिए हैं, लेकिन केवल पंडित धीरेंद्र शास्त्री पर मुकदमा दर्ज करने के पीछे का कारण स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह धारा गैर जमानती है और इसमें पंडित धीरेंद्र शास्त्री को जमानत के लिए आवेदन देना होगा.
धीरेंद्र शास्त्री के उकसाने पर निकाले गए हरे झंडे: वहीं, दूसरा मामला कुंभलगढ़ किले से जुड़ा हुआ है. यहां केलवाड़ा थाने में धीरेंद्र शास्त्री के खिलाफ FIR दर्ज की गई है, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 153a, 295a और 511 के तहत अपराध दर्ज किया गया है. कुंभलगढ़ की घटना को पंडित धीरेंद्र शास्त्री के बयान से जोड़कर बताया गया है. दरअसल पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने उदयपुर में जो भाषण दिया उसमें उन्होंने कहा था कि ''कुंभलगढ़ के महाराणा प्रताप के किले में हरे झंडे लहरा रहे हैं और यह भारत है जो भगवा झंडों का देश है. पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि यदि उनमें दम है तो वे कुंभलगढ़ जाएं और वहां से हरे झंडे हटा दें. इसके ठीक बाद 5 लोग कुंभलगढ़ पहुंचते हैं और एक धार्मिक स्थल से झंडे हटा देते हैं''. इसी घटना को संज्ञान लेते हुए केलवाड़ा पुलिस ने यह अपराध दर्ज किया है. इसमें भी मुख्य आरोपी पंडित धीरेंद्र शास्त्री को बनाया गया है. स्थानीय पुलिस अधिकारियों का कहना है कि ''पंडित धीरेंद्र शास्त्री के आने के बाद ही यह घटना घटी और इससे इलाके में लोगों की भावनाएं भड़क सकती थीं''.