जबलपुर।प्रदेश भर में कोरोना वायरस के खतरे के कारण मंदिर, मस्जिद के साथ ही सभी धार्मिक स्थल भी बंद कर दिए गये हैं. इससे फूलों के व्यापार को बड़ा झटका लगा है. फूलों के थोक व्यापारियों और किसानों को जहां बड़ा नुकसान हो रहा है, वहीं फूलों की माला बनाने वाले हजारों दिहाड़ी श्रमिकों के सामने रोजी-रोटी का संकट छा गया है. लॉकडाउन के कारण दुकानों में रखा सामान तो बाद में भी बिक जाएंगा. लेकिन फूलों की खेती करने वालों के लिए एक-एक दिन नुकसान वाला साबित हो रहा है. ऐसा ही कुछ जबलपुर में है. जहां लगभग पांच सौ एकड़ जमीन पर गेंदा फूल की खेती होती है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से इन खेतों में लगे फूलों को खरीदने वाला नहीं मिल रहा है.
लॉकडाउन से फीकी पड़ी फूलों की खुशबू फुलवाड़ी में मुरझा रहे हैं फूल
शहर से सटे बरगी विधानसभा के चरगवां रोड पर स्थित डगडगा हिनोता में फुलवाड़ी के नाम से प्रसिद्ध इलाका है, जहां गेंदा फूल की खेती होती है. यहां का हर किसान इन खेतों से लगभग हर हफ्ते एक हजार किलो गेंदा का फूल निकालता है. लेकिन पिछले पंद्रह दिन से तैयार फूल नहीं तोड़े जा रहे हैं. लॉकडाउन से न मंदिर के पट खुल रहे हैं और न ही फूलों की दुकानें सज रही हैं. ऐसे में फूलों की खेती करने वाले किसानों ने इसे तोड़ना ही बंद कर दिया है.
फुलवाड़ी में मुरझा रहे हैं फूल दो वक्त की रोटी का आ गया संकट
फूल का बगान तैयार करने वाले राजेश पटेल बताते हैं कि फूलों को तोड़कर बर्बाद करने से अच्छा है कि उसे खेतों में ही छोड़ दें. धीरे-धीरे फूल झड़कर नीचे गिर जाएंगे. अगले 10 दिन तक पूरा फूल बगान ही बर्बाद हो जाएगा. राजेश ने बताया कि किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या अब रोजी-रोटी की हो गई है. फूलों की बिक्री से हर हफ्ते कमाई हो जाती थी, लेकिन अब खेतों से निकलने वाले फूलों की बिक्री नहीं होने से किसानों को परेशानी हो गई है.
सरकार से उम्मीदफूल कारोबारियों के मुताबिक छोटे थोक व्यापारियों को भी इस नवरात्र के नौ-दस दिनों में डेढ़ से दो लाख रुपये की आय हो जाती थी, शादी विवाह का भी सीजन निकल गया. जैसे-तैसे जो फूलों के आर्डर मिले थे वह भी कैंसिल हो गए. इस बार यह व्यवसाय पूरी तरह चौपट हो गया है. इन व्यापारियों को केवल नवरात्र के दौरान लाखों रुपए का नुकसान हुआ है. फूल व्यापारियों का कहना है अब रोजी रोटी पर भी संकट के बादल छा गए हैं. घर-परिवार कैसे चलेगा दो वक्त की रोटी के भी लाले पड़ रहे हैं. ऐसे में अब सरकार से ही उम्मीद है. अगर कोई मदद मिल जाये तो हमारे परिवार का भरण पोषण हो सके.