जबलपुर।संस्कारधानी पहुंचे फिल्म कलाकार यशपाल शर्मा का कहना है कि "हमारे समाज में भी कई ऐसे चरित्र हैं, जिन पर बायोपिक बननी चाहिए और छोटी-छोटी कहानियां लोगों को अपने स्तर पर सूट करनी चाहिए, इंटरनेट के जरिए इन समाज तक पहुंचाना चाहिए." दरअसल यशपाल शर्मा जबलपुर में एक हरियाणवी फिल्म दादा लखमी के सिलसिले में पहुंचे थे, दादा लखमी पंडित लक्ष्मीचंद के जीवन पर बनाई फिल्म हैं. पंडित लक्ष्मीचंद हरियाणा के एक प्रसिद्ध लोकगायक थे, इस फिल्म को कई राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय अवार्ड मिले हैं.
लोक कलाकार का पहला बायोपिक:नए दौर में कई राष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट फुटबॉल और दंगल के खिलाड़ियों के ऊपर बायोपिक बनाई गई है, बेशक इन बायोपिक से इन खिलाड़ियों की जिंदगी के बारे में जानने का मौका मिलता है. लेकिन दादा लखमी के नाम से एक फिल्म बनाई गई है, जिसे कई राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले हैं. यह बायोपिक हरियाणा के एक लोक कलाकार के ऊपर बनाई गई है, जिसमें हिंदी सिनेमा जगत के कलाकार यशपाल शर्मा ने काम किया है. जबलपुर आए यसपाल शर्मा ने बताया कि "दादा लखमी हरियाणवी में बनी एक बेहतरीन फिल्में और यह प्रयोग सभी भाषाओं में किया जा सकता है."
हरियाणा के कालिदास:पंडित लख्मीचंद का जन्म 1903 में हरियाणा में हुआ था और 1945 तक मात्र 42 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई थी, लेकिन अपने इस छोटे से जीवन में ही उन्होंने हरियाणा में जो नाम कमाया उसकी वजह से उन्हें हरियाणा के कालिदास की संज्ञा दी गई. पंडित लख्मीचंद ने जो गीत लिखे उसकी वजह से उन्हें कबीर की संज्ञा भी दी गई थी, क्योंकि इन गीतों में सुरताल के साथ ही अध्यात्म भी था. यशपाल शर्मा का कहना है कि "पंडित लख्मीचंद एक ऐसा व्यक्ति तथा जिसे अंग्रेजों के जमाने में बेहद लोकप्रियता हासिल थी और उन्हें देखने और सुनने के लिए दूर-दूर से लोग उनके गांव आते थे. उनके अंदर एक किस्म की जिद थी, जिसने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया था. अगर ऐसी ही जिद आज का आदमी कर ले तो वह भी पंडित लख्मीचंद जैसा स्थान बना सकता है."