जबलपुर। पिछले साल फसल बीमा का प्रीमियम तो किसानों के खातों से तो काट लिया गया, लेकिन बीमा कंपनी तक नहीं पहुंचा. जबलपुर कृषि विभाग के उप संचालक का कहना है कि, पिछले साल खरीफ के मौसम में कई किसानों की फसल पूरी तरह बर्बाद हुई थी, तो किसानों ने बीमा कंपनी से राहत मांगी. जबलपुर कृषि विभाग ने ओरिएंटल बीमा कंपनी से क्लेम देने के बारे में कहा, तो बीमा कंपनी का जवाब था कि, सरकार ने प्रीमियम ही जमा नहीं किया है. जब प्रीमियम ही जमा नहीं हुआ है, तो क्लेम की राशि कैसे दें.
फसल बीमा राशि के लिए परेशान किसान पिछले साल जबलपुर के सिलुवा गांव में धान की फसल कुछ बीमारी की वजह से बर्बाद हो गई थी. किसानों को उम्मीद थी कि, बीमा कंपनी उन्हें मुआवजा देगी, फसल की बर्बादी देखने के लिए केंद्र से भी टीम आई थी. बाकायदा खेतों में जाकर टीम ने मुआयना किया था और फसल के उत्पादन का आकलन किया गया. जब इतने बड़े स्तर पर एक्सरसाइज हुई थी, तो किसान को उम्मीद थी कि, राहत भी बड़ी मिलेगी, लेकिन किसान के हाथ कुछ नहीं आया.
बीमा ना करवाने की कसम खाई
पिछले साल के अनुभवों के आधार पर इस साल किसानों ने तय किया है कि, वो फसल बीमा की राशि अपने खाते से नहीं कटने देंगे. हालांकि फसल बीमा की राशि बिना किसान की सहमति के सीधे उनके खाते से काट दी जाती है. इस साल ऐसा सुनने में आ रहा था की, फसल बीमा ऐच्छिक किया जाएगा, लेकिन जबलपुर कृषि विभाग के उपसंचालक एसके निगम का कहना है कि, अब तक सरकार इस पर कोई स्पष्ट नीति नहीं बना पाई है और विचार-विमर्श चल रहा है. जबकि खरीफ की फसल को लेकर किसानों ने कृषि ऋण ले लिया है.
बीमा केवल लागत मूल्य पर, ना कि उत्पादन का
किसानों का कहना है कि, वे अब बीमे की राशि नहीं कटने देंगे. हालांकि किसानों को जो बीमा मिलता है, वह किसानों की लागत मूल्य पर होता है, मतलब यदि किसान 10 हजार की लागत लगाता है और उसकी फसल पचास हजार की निकलती है और फसल बर्बाद हो जाती है, तो बीमे के जरिए किसान को मात्र 8 हजार ही मिलेगा और इस पर उससे लगभग 8 सौ रुपए का प्रीमियम भरवाया जाएगा. यह फसल बीमा कंपनियों के फायदे की नीति है. किसानों से जबरन प्रीमियम लिया जाता है और इसे बीमा कंपनियों को दे दिया जाता है. यह पैसा अरबों रुपयों में होता है. यदि बीते सालों पर नजर डालें, तो बीमा कंपनियां अरबों रुपए के फायदे में चल रही हैं.