जबलपुर। शहर के गोपालपुर इलाके में खेतों के बीचों-बीच बने इस हॉस्पिटल का संचालन एक साध्वी करती है, जिन्हें लोग दीदी ज्ञानेश्वरी के नाम से जानते हैं. दीदी ज्ञानेश्वरी जबलपुर में समाज सेवा की सबसे बड़ी मिसाल बनकर उभरी हैं क्योंकि दीदी ज्ञानेश्वरी अब तक एक हजार से ज्यादा कैंसर के मरीजों का निशुल्क इलाज करा चुकी हैं, जबकि हजारों गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा भी दे चुकी है.
पंजाब की रहने वाली दीदी ज्ञानेश्वरी ने 1992 में संन्यास ले लिया था और वे जबलपुर आ गयीं. यहां उन्होंने सबसे पहले गरीब आदिवासी बच्चों के लिए एक स्कूल खोला, जिसमें हर साल 500 से अधिक बच्चे निशुल्क शिक्षा ग्रहण करते हैं. लेकिन, पांच साल पहले स्कूल में ही एक ऐसी घटना हुई थी, जिससे ज्ञानेश्वरी दीदी ने यह हॉस्पिटल खोलने का विचार बना लिया था.
दरअसल, स्कूल में पढ़ने वाले एक बच्चे को कैंसर की बीमारी थी. वे बताती हैं कि कैंसर से पीड़ित यह बच्चा अपने अंतिम समय में बहुत ज्यादा तड़पा था, जिसके बाद से मैंने तय कर लिया था कि वह एक ऐसा अस्पताल खोलेंगी, जहां कैंसर से पीड़ित मरीजों को मुफ्त इलाज मिल सके और उनकी सेवा की जाए. लिहाजा अस्पताल खोलने के लिए साध्वी ने शहर के लोगों से मदद मांगी, जिसमें शहर के लोगों ने भी उनका पूरा सहयोग किया.
बीते पांच सालों में जबलपुर के इस अस्पताल में एक हजार से ज्यादा कैंसर से पीड़ित मरीजों का निशुल्क इलाज कराया जा चुका है. शहर के कई नामी डॉक्टर यहां मरीजों का इलाज निशुल्क करने के लिए आते हैं, जबकि मरीजों को कैंसर की रेडियो थेरेपी की व्यवस्था भी है. वहीं अस्पताल में भर्ती मरीजों को शुद्ध भोजन भी मुफ्त में दिया जाता है.
दीदी ज्ञानेश्वरी ने परिवार को छोड़कर भले ही संन्यास धारण कर लिया हो, लेकिन इसके बाद उन्होंने समाज सेवा का रास्ता अपना लिया था. आज साध्वी ज्ञानेश्वरी की वजह से कई आदिवासी बच्चे पढ़ पाए और कई समाज से ठुकराए कैंसर के मरीजों को अंतिम समय में ही सही लोगों का प्यार मिल सका, जो समाज सेवा की बड़ी मिसाल है.