मध्य प्रदेश

madhya pradesh

ETV Bharat / state

छिपायें नहीं बतायें: पॉक्सो कोर्ट के रास्ते में दम तोड़ती मासूमों की 'सिसकियां'!

देश में प्रचार प्रसार की कमी की वजह से बच्चे अदालत नहीं पहुंच पा रहे हैं. जिसकी वजह से अभी भी बच्चों के साथ लैंगिक अपराधों में कमी नहीं आई है.

Design photo
डिजाइन फोटो

By

Published : Mar 26, 2021, 7:05 AM IST

Updated : Mar 26, 2021, 7:16 AM IST

जबलपुर। जिला अदालत में पॉक्सो एक्ट के मामलों की सुनवाई के लिए दो अदालतें बनाई गई हैं. जिसमें बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराधों से जुड़े मामलों की सुनवाई होती है. पॉक्सो के मामलों में अभी तेजी नहीं आई है. शिकायतें भी बहुत कम होती हैं. जानकारों का कहना है कि बच्चे अभी भी उनके साथ होने वाले यौन दुर्व्यवहार के प्रति सतर्क नहीं है और उन्हें इसकी जानकारी नहीं है. इसलिए वह शिकायत नहीं करते और अदालतों तक कम मामले ही पहुंच पाते हैं.

समाज का दबाव

सरकारी सर्वे में यह बात सामने आई थी कि हर 3 में से एक बच्चा शारीरिक शोषण का शिकार होता है. पारिवारिक परिस्थितियों में शारीरिक रूप से शोषित बच्चों में से 86% बच्चे मां-बाप द्वारा सूचित होते हैं. स्कूल जाने वाले बच्चों में से 65% ने बताया कि उन्हें शारीरिक दंड मिलता है और 3 में से 2 बच्चे यह दंड भुगत चुके हैं. शारीरिक दंड में 62% मामलों में सरकारी स्कूल सामने आई 53% बच्चों ने बताया कि वे एक से ज्यादा बार यौन हिंसा का शिकार हो चुके हैं और हर दूसरा बच्चा भावनात्मक शोषण का शिकार मिला.

यौन उत्पीड़न का दंश झेल रहे बच्चे

पॉक्सो अधिनियम 2012

इन्हीं अध्ययनों के बाद लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 बनाया गया था और 2019 में हर जिले में इन मामलों की सुनवाई के लिए अदालतें बनाई गई थी. जबलपुर में भी ऐसी दो अदालतें काम कर रही हैं. जहां लगभग पाक्सो अधिनियम 2012 के मामले सुने जाते हैं. हालांकि अदालत के जज मीडिया के सामने कुछ नहीं बोले लेकिन उन्होंने इस बात को माना है कि समाज के दबाव के चलते अभी भी बच्चे शोषण का शिकार हो रहे हैं लेकिन अपराध दर्ज नहीं करवा रहे हैं.

प्रचार प्रसार की कमी

18 साल से कम के लड़के और लड़कियों को यदि कोई भी को छाती में मुंह पर या यौन अंगों पर स्पर्श करता है, तो यह अपराध की श्रेणी में माना जाएगा और अपराध किस स्तर तक हुआ है. इसकी जांच के बाद आरोपी को 3 से 7 साल तक की सजा दी जा सकती है. इसमें कुछ अपराध गैर जमानती भी हैं लेकिन इस बात की जानकारी बच्चों को नहीं है. उनके परिवार वालों को नहीं है. इसलिए ऐसी घटनाएं होती हैं लेकिन आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पाती. सरकार के बाल विकास विभाग ने अलग-अलग कार्यशाला ओं के जरिए पहले स्कूल के शिक्षकों को इसके बाद हॉस्टल के अधीक्षकों को इस अधिनियम की जानकारी दी जा रही है.

त्वरित न्याय

हालांकि इन अदालतों में त्वरित न्याय दिया जा रहा है और इन पर नजर भी रखी जा रही है. जबलपुर जिला अदालत की जज का कहना है कि मामले कम आते हैं लेकिन जो भी आते हैं उनमें तुरंत कार्रवाई करने की कोशिश की जाती है. कानून उन बच्चों के लिए आर्थिक सहायता भी मुहैया करवाता है, जिनके साथ कोई यौन दुष्कर्म हुआ है.

Last Updated : Mar 26, 2021, 7:16 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details