Advocate Strike in MP: बिना लॉयर के चली अदालतें, पक्षकार बने वकील, देखें क्या है पूरा मामला - advocate strike in mp courts ends
एमपी हाई कोर्ट में वकीलों की हड़ताल के दौरान कई ऐसे मामले देखने को मिले जो बेहद अनूठे थे. यहां बार और बेंच के बीच के गतिरोध के चलते बिना वकीलों के ही अदालतें चलीं. पक्षकारों ने वकील बनकर जिरह की. पढ़ें पूरी रिपोर्ट और जानें लोग कैसे अपने केस की पैरवी करते नजर आए.
एमपी हाईकोर्ट में वकीलों की हड़ताल
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Published : Mar 28, 2023, 7:54 PM IST
जबलपुर: मध्यप्रदेश हाई कोर्ट में मंगलवार को बार और बेंच के बीच का गतिरोध जारी रहा. हालांकि कल से जरुर स्ट्राइक खत्म हो रही है. मगर हड़ताल के अंतिम दिन जो दिखा वो बड़ा ही दिलचस्प था. वजह न्याय की आस में दूरदराज से हाईकोर्ट आए फरियादियों को परेशानी और उसकी निराकरण था. आइए इस रिपोर्ट में उन सभी खास घटनाक्रमों को जानें जिसमें ना वकील थे, ना ही उनकी दलील थी मगर फिर भी मुकदमें सुने गए. बहुत से फरियादी खुद ही अदालत में पहुंचे लेकिन वह सही तरीके से अपने मामले पेश नहीं कर पाए और उन्हें अगली तारीखें मिली हैं. वकीलों की हड़ताल अंतिम दौर में है. मगर दूसरी तरफ दो दिन पहले चीफ जस्टिस के प्रशासनिक आदेश के खिलाफ एक पूर्व जज ने याचिका लगाकर चुनौती दी है. इस पर सुनवाई 31 अप्रैल को होगी.
चीफ जस्टिस के आदेश के खिलाफ याचिका: एक रिटायर्ड जज आरके श्रीवास ने मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के प्रशासनिक आदेश को एक याचिका के जरिए चुनौती दी है. उन्होंने इस मामले में एक याचिका दायर की है, जिसमें आरके श्रीवास का कहना है कि "25 पुराने मामलों की सुनवाई का आदेश न्याय संगत नहीं है और इसमें फरियादी को न्याय नहीं मिल सकता. याचिका में कहा गया है कि न्याय प्रक्रिया को निश्चित समय में पूर्ण करने की बात न्याय संगत नहीं है. इस मामले की सुनवाई 31 अप्रैल के लिए नियत की गई है."
संविदा कर्मचारियों ने खुद लड़ा केस: मध्य प्रदेश बाल भवन से जुड़े हुए संविदा कर्मी खुद अदालत के सामने पेश हुए. इनके वकील हड़ताल की वजह से इनका पक्ष रखने नहीं पहुंचे. जस्टिस संजय द्विवेदी की कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई. दरअसल बाल भवन के संविदा कर्मचारियों को बाल भवन प्रबंधन ने हटाने का आदेश देकर नए लोगों की भर्ती करने का आदेश जारी किया था. पीड़ित कर्मचारियों ने कोर्ट से कहा कि "अब इस उम्र में भी नया काम नहीं खोज सकते, इसलिए बाल भवन प्रबंधन का आदेश निरस्त किया जाए. कोर्ट ने इन लोगों की बात सुनते हुए बाल भवन प्रबंधन का आदेश निरस्त कर दिया."
दो भाइयों की कोर्ट में लड़ाई: दरअसल छिंदवाड़ा की चौरई के रहने वाले दो भाइयों के बीच में संपत्ति का विवाद चल रहा था. आज मामले की सुनवाई जस्टिस जीएस अहलूवालिया की कोर्ट में होनी थी, लेकिन वकीलों की हड़ताल की वजह से इनके वकील कोर्ट नहीं पहुंचे और दोनों ही भाइयों को अपनी पैरवी खुद करनी पड़ी. इस दौरान दोनों ही भाई कोर्ट में ही आपस में बहस पर उतर आए. हालांकि जस्टिस अहलूवालिया ने दोनों को समझाइश दी और अपने आदेश में पूर्व लिखित शर्तों को पूरा करने के बाद फिर से कोर्ट में उपस्थित होने का आदेश दिया.
दो पार्टनर का विवाद: वहीं जस्टिस विशाल धगट की कोर्ट में संपत्ति से जुड़ा हुआ एक मामला आया, जिसमें एक फर्म के दो पार्टनर आमने-सामने थे. दोनों में कारोबार में बंटवारे को लेकर विवाद हो गया था. आज इसकी सुनवाई थी लेकिन हड़ताल की वजह से जब वकील साहब कोर्ट नहीं पहुंचे तो दोनों ही पार्टनर्स ने अपना पक्ष खुद रखा, लेकिन सही तरीके से पक्ष ना रखने की वजह से मामले को आगे बढ़ाना पड़ा. वहीं ज्यादातर मामलों में कुछ अदालतों ने केस सुनने के पहले फरियादी से कहा कि वह अपने वकील को कैसे हटा दें तब उसकी बात सुनी जाएगी. लेकिन बहुत से लोग इसके लिए तैयार नहीं हुए और उन्हें बैरंग वापस लौटना पड़ा. फिलहाल अदालत का गतिरोध जारी है और 28 मार्च तक हड़ताल जारी रही. सामान्य कामकाज की 29 मार्च से होने की उम्मीद है.
आम आदमी भटकता नजर आया:वहीं अदालत में बहुत से फरियादी भटकते नजर आए, जिन्हें या तो अपने परिजनों के लिए जमानत याचिका लगानी थी या फिर निचली अदालत के किसी आदेश को चुनौती देनी थी. ऐसी ही एक फरियादी पन्ना से आई हुई थी. उसका कहना था कि उसके साथ बलात्कार की घटना हुई थी और जिसने बलात्कार किया था उसे कोर्ट से जमानत मिल गई है. अब आरोपी पीड़ित लड़की को केस वापस लेने के लिए परेशान कर रहा है. जस्टिस नंदिता दुबे की अदालत में मामला सुना गया, लेकिन पूरा पक्ष सही तरीके से ना रखे जाने की वजह से मामले को 4 सप्ताह के लिए आगे बढ़ा दिया गया.