भोपाल/जबलपुर / ग्वालियर.मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने आर्य समाज मंदिरों में होने वाली शादियों पर रोक लगा दी थी. जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस आदेश पर स्टे (अंतरिम रोक) लगा दी है. जिसके बाद एक बार फिर से आर्य समाज के मंदिरों में शादी करने का रास्ता साफ हो गया. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का आर्य समाज ने स्वागत किया है. आर्य समाज से आचार्यों का कहना है कि हम वेद को मानने वाले लोग हैं. यहां के मंदिरों में वैदिक मान्यता के अनुसार ही दोनों पक्षों की सहमति से ही विवाह समपन्न कराए जाते हैं. हालांकि जो भ्रम था वह कुछ लोगों की वजह से आया था, जो आर्य समाज के नाम पर दुकानदारी चला रहे हैं, लेकिन इसका लांछन आर्य समाज पर नहीं लगाया जाना चाहिए.
1937 में पारित हुआ था आर्य समाज एक्ट :सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आर्य समाज मंदिरों के आचार्यों और पुजारियों का कहना है कि - 1937 में आर्य समाज एक्ट पारित हुआ. बाद में 1955 में हिन्दू विवाह एक्ट बना.
- इसमें ग्वालियर हाई कोर्ट ने कुछ नियमों को जोड़ दिया था. इसमे कहा गया था कि माता पिता की उपस्थिति और सहमति का आवेदन भी होना चाहिए.
-आर्य समाज का विवाह एक्ट अलग है. जिसमें शादी करने जा रहे महिला और पुरुष की सहमति ही जरूरी होती है.
- सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आर्य समाज के आचार्य धीरेंद्र पांडे कहते हैं कि अब फिर से 1937 में बने आर्य समाज के संविधान के अनुरूप विवाह हो सकते हैं.
ऐसे समपन्न होता है आर्य समाज मंदिर में विवाह
पांडे कहते हैं कि आर्य समाज गैर पारिवारिक विवाह नहीं करवाता.
- आर्य समाज मे जब भी विवाह होता है उस दौरान सभी नियमों का पालन किया जाता है.
- यहां विवाह के दौरान वर-वधू के माता-पिता सहित रिश्तेदार भी शामिल होते हैं.
- अग्नि के समक्ष विवाह होता है. विवाह पूरी तरह से हिन्दू रीति रिवाज से संपन्न होता है. जिसका प्रमाणपत्र भी दिया जाता है.
यह है पूरा मामला :हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने आर्य समाज की संस्थाओं में होने वाली शादियों पर सवाल उठाया था. हाईकोर्ट ने माना था कि शादियों के लिए कुछ आर्य समाज की संस्थाएं दुकानों के रूप में काम कर रही हैं. कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि आर्य समाज में होने वाली शादियों में कोर्ट द्वारा दिए गए कई निर्देशों का पालन नहीं किया जाता है. इसकी वजह से पूरे समाज में दूषित वातावरण पैदा हो रहा है. साथ ही हाईकोर्ट ने ये भी कहा था कि आर्य समाज में होने वाली शादियों के सर्टिफिकेट जारी करने का अधिकार सभी को नहीं है. इसे लेकर आर्य समाज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी.
कैसे हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
-ग्वालियर की पवनसुत कॉलोनी स्थित पंडित मूल शंकर आर्य समाज वैदिक संस्था द्वारा पिछले दिनों जारी किए गए वैवाहिक प्रमाण पत्र को लेकर हाई कोर्ट ग्वालियर बेंच ने कड़ी आपत्ति जाहिर की थी.
- हाईकोर्ट ने कहा था कि इस तरह की संस्थाएं विवाह जैसे संवेदनशील मामले में सावधानी नहीं बरत रही हैं.
- कोर्ट ने वर-वधु पक्ष के लोगों को जानकारी नहीं देना और उन्हें नोटिस जारी नहीं करना भी लापरवाही बताया था.
- इसे लेकर हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच ने आर्य समाज मंदिर में होने वाली शादियों पर रोक लगा दी थी और उन्हें मैरिज सर्टिफिकेट जारी करने से रोक दिया था.
- इसके खिलाफ आर्य समाज की प्रांतीय इकाई मध्य भारतीय आर्य समाज प्रतिनिधि सभा के पदाधिकारी प्रकाश आर्य ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी.
- सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद ग्वालियर हाईकोर्ट के फैसले पर स्थगन आदेश जारी किया है. हालांकि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला अभी नहीं आया है, लेकिन हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से आर्य समाज संस्था को बड़ी राहत मिली है.