इंदौर। विश्व पर्यावरण दिवस पर जहां देश भर में पर्यावरण संरक्षण के आयोजन हो रहे हैं, वहीं प्रदेश की एकमात्र सिरपुर झील पर मंडरा रहे अतिक्रमण और उपेक्षा के खतरे के कारण इस झील को रामसर का मिला दर्जा भी संकट में है. इतना ही नहीं इंदौर की झील में जलकुंभी के कारण धीरे-धीरे यहां देश-विदेश से आने वाले दुर्लभ पक्षियों का बसेरा भी खत्म हो रहा है. इसे लेकर पर्यावरणविद अब खासे निराश हैं.
गंदगी की भेंट चढ़ी सिरपुर झील : इंदौर की सिरपुर झील अब तक वेटलैंड होने के कारण दुनिया भर से यहां आने वाले दुर्लभ पक्षियों का बसेरा रही है. जून 2022 में यूनेस्को ने इंदौर की सिरपुर झील को उन 75 स्थानों में शामिल किया था, जिन्हें रामसर साइट का दर्जा प्राप्त है. माना जा रहा था कि सिरपुर झील को रामसर साइट का दर्जा प्राप्त होने के बाद यहां प्राकृतिक पक्षियों की बसाहट और नैसर्गिक विकास की राह खुलेगी. लेकिन बीते कोरोना काल के बाद से ही इस झील को इंदौर जिला प्रशासन और नगर निगम ने उपेक्षित छोड़ दिया, जिसके फलस्वरूप झील के आसपास के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर आवासीय और व्यवसायिक इलाके विकसित होने के कारण यहां का नैसर्गिक संतुलन लगातार बिगड़ गया. कई कॉलोनियों की ड्रेनेज लाइने झील में छोड़ दिए जाने के कारण यहां के पानी में गंदगी आने लगी. इसके फलस्वरूप न केवल पानी दूषित हो चुका है बल्कि पानी में जलकुंभी और अन्य अशुद्धियां भी तेजी से बढ़ रही हैं.
प्रवासी पक्षियों की वैरायटी में कमी: ऐसी स्थिति में यहां साइबेरिया सहित दुनिया के विभिन्न देशों से आने वाले प्रवासी पक्षी अब अपना नैसर्गिक घोंसला चिन्हित स्थानों पर नहीं बना पा रहे हैं. फिलहाल झील के आधे हिस्से में जलकुंभी फैल चुकी है, जबकि झील के पीछे वाले हिस्से में बड़े पैमाने पर कॉलोनियां विकसित हो चुकी हैं. इसके अलावा झील के चारों तरफ व्यवसायिक गतिविधियां बढ़ने के कारण यहां पक्षी नहीं आ पा रहे हैं. इंदौर के पर्यावरणविद भालू मौडे बताते हैं कि "बीते कुछ सालों में यहां सुर्खाब पक्षियों के घोसले और प्राकृतिक आवासी स्थल उजड़ चुके हैं. स्थिति यह है कि साल भर में 30 से 40 जोड़ों में जो सुर्खाब पक्षी यहां हर साल आते थे उन्हें अब झील में व्याप्त जलकुंभी के कारण आसमान से पानी नजर नहीं आ पा रहा है. यही स्थिति अन्य पक्षियों को लेकर भी बन रही है, जिसके फलस्वरूप यहां आने वाले प्रवासी पक्षियों की 20 से 25 प्रतिशत वैरायटी लगभग खत्म हो चुकी है. वहीं, अब अन्य प्रवासी पक्षी भी जो यहां आते थे वह भी तेजी से घट रहे हैं."