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गांव की खुशहाली के लिए आज भी निभाई जाती है सैकड़ों साल पुरानी अनूठी परंपरा, देखें वीडियो

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Published : Jul 16, 2019, 10:22 PM IST

गौतमपुरा के रुणजी गांव में सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी एक अनूठी परंपरा निभाई जा रही है, जो श्रावण मास के शुभारंभ पर मनाई जाती है. गांव का कचरा व आंगन के कचरा को सभी महिलाएं अपनी- अपनी टोकरी में इकट्ठा कर नाले में बहा देती है.

गांव की खुशहाली के लिए मनाई जाती है अनूठी परंपरा

इंदौर। आज मनाई गई गुरू पूर्णिमा के साथ ही सावन के महीने की शुरूआत हो गई है. गुरू पूर्णिमा के अवसर पर इंदौर जिले की देपालपुर तहसील के गौतमपुरा के एक गांव में सावन महीने के आगमन पर ग्रामीण एक अनूठी परंपरा मनाते हैं. ग्रामीणों का मानना है कि इस पंरपरा से गांव में सुख समृद्धि, अच्छी वर्षा व खुशहाली आती है. ग्रामीणों गुरू पूर्णिमा को नए साल की तरह मनाते हैं.

गौतमपुरा के रुणजी गांव में सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी एक अनूठी परंपरा निभाई जा रही है, जो श्रावण मास के शुभारंभ पर मनाई जाती है. इसमे हिन्दू- मुस्लिम सभी वर्ग और पूरा गांव मिलकर पूर्णिमा के एक दिन पहले गांव के सभी मंदिरों में जा कर भगवान पर पोशाक व ध्वजा चढ़ाते हैं. इसके साथ ही दरगाह पर जाकर भी चादर चढ़ाई जाती है. शाम को पूरा गांव हनुमान मंदिर पर सुंदरकांड में शामिल होता है जो देर रात तक आयोजित किया जाता है.

पूर्णिमा पर सुबह से होता है अनूठी परंपरा का आयोजन
पूर्णिमा की सुबह से समूर्ण गांव के पुरुष हनुमान मंदिर पर गांव के पटेल के नेतृत्व में हवन में बैठते है जो लगभग 11 बजे तक चलता है. इसमें भगवान को स्नान कराया जाता है. भगवान के स्नान वाले जल में हवन की भभूती को डाल कर गांव के मुख्य द्वार पर लाल कपड़े का फीता बांध कर जल को उसके नीचे रखा जाता है. गांव मे सुख-समृद्धि व किसी प्रकार की कोई बीमारी या गांव में कोई महामारी न हो इसलिए वह जल गांव के मुख्य द्वार पर रख नीम के पत्तों से सभी ग्रामीणजनों व पशुओं पर छिड़का जाता है.

गांव की खुशहाली के लिए मनाई जाती है अनूठी परंपरा

महिलाएं व्रत रख कर करती है पूरे गांव में स्वछता का काम
पूर्णिमा के दिन पूरे गांव की महिलाएं व्रत रख कर अपने घर आंगन की सफाई करती हैं. इसके बाद गांव का कचरा व आंगन के कचरा को सभी महिलाएं अपनी- अपनी टोकरी में इकट्ठा करती है. गांव के मुख्य द्वार, जहां पुरूष वर्ग भगवान के जल का छिड़काव करते हैं, वहां से होती हुई महिलाएं अपनी- अपनी टोकरी के साथ गांव के अंतिम छोर पर बने नाले में जाती है और गांव व आंगन के कचरे को उस नाले में बहा देती है. ग्रामीणों का मानना है कि इससे गांव की सारी गंदगी व बुराइयां नाले में बह जाती हैं.

ग्रामीणों के अनुसार इस गांव का इतिहास है कि इस परंपरा के मानने के चलते आज तक इस गांव में कोई महामारी नहीं हुई. किसी तरह की आगजनी नहीं हुई और न ही गांव में किसी तरह का नुकसान होता है. इसलिए यह परंपरा पूरा गांव सदियों से निभाता आ रहा है.

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