इंदौर। दुनिया भर में कोरोना महामारी के कारण छाई आर्थिक मंदी से उबरने की तमाम कोशिशों के बावजूद प्रदेश का रेडीमेड गारमेंट सेक्टर पटरी पर नहीं लौट पा रहा है. आलम यह है कि यहां की मैन्युफैक्चरिंग यूनिटें मुंबई, दिल्ली और लुधियाना की मिलें और फैक्ट्री शुरू होने के इंतजार में है. लिहाजा प्रदेश में रेडीमेड गारमेंट सेक्टर फिलहाल 60 फीसदी घाटे से जूझ रहा है. हालांकि अब ग्राहकी बढ़ने से व्यापार के फिर संभलने की उम्मीद बंधी है.
आर्थिक मंदी से गुजर रहा रेडीमेड गारमेंट आर्थिक मंदी से गुजर रहा रेडीमेड गारमेंट
इंदौर के ख्यात कपड़ा मार्केट के अलावा जेल रोड, एमजी रोड, मालवा मिल किशनपुरा छत्रिय के अलावा शहर भर में सैकड़ों की तादात में मौजूद इन दुकानों पर भीड़ के बावजूद खरीदारी 40 फीसदी भी नहीं है. दरअसल शहर का रेडीमेड गारमेंट उद्योग लॉकडाउन के बाद से ही आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा था. इस बीच लोगों को त्योहारों से कुछ उम्मीद बंधी थी लेकिन वो भी मनमाफीक ग्राहकी ना होने से टूट गई, इन हालातों में शहर के सैकड़ों थोक एवं फुटकर कपड़ों के दुकानदार दिल्ली मुंबई और लुधियाना से लाखों का जो माल बेचने के लिए उधारी में लाए थे वह भी दुकानों और गोदामों में जस का तस भरा पड़ा है.
इंदौर और जबलपुर में है मैन्युफैक्चरिंग यूनिट
प्रदेश में रेडीमेड गारमेंट तैयार करने का काम इंदौर के अलावा जबलपुर में होता है. खास बात यह है कि इंदौर के आसपास करीब 300 किलोमीटर के दायरे में ऐसे सैकड़ों गांव हैं. जहां लोग कच्चा माल ले जाकर सिलाई कर कपड़े तैयार कर व्यापारियों को लौट आते हैं. लिहाजा इंदौर और जबलपुर की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट बड़े पैमाने पर ग्रामीण अंचल में गारमेंट संबंधी रोजगार भी उपलब्ध कराती हैं.