इंदौर। कोरोना के नियंत्रण में रहने के कारण रक्षाबंधन को लेकर देशभर में उत्साह का माहौल है. जिसे लेकर अभी से घरों से लेकर बाजार तक तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. इधर इंदौर में कुछ ऐसी भी बहनें हैं, जो दृष्टिहीन होने के कारण राखियां देख तो नहीं सकती. लेकिन राखियों को छूकर और उनके सुंदरता महसूस करके तरह-तरह के रक्षा सूत्र बखूबी तैयार कर रही हैं.
दरअसल इंदौर के महेश दृष्टिहीन कल्याण संघ में रहकर पढ़ाई करने वाली गरीब और असहाय दृष्टिहीन बालिकाएं अपने भाइयों के अलावा देश भर के लोगों के लिए राखियां तैयार कर रही हैं. दृष्टिहीन बालिकाएं सुंघकर और महसूस करके एक से एक सुंदर राखियां तैयार करती हैं. इसके लिए इन्हें क्राफ्ट की शिक्षिका पहले राखी का एक डिजाइन बनाकर इनके हाथों में सौंपाती है, इसके बाद राखी के रेशमी धागे से लेकर मोती, कुंदन और अन्य सामग्री को महसूस करने के बाद मॉडल राखी की तरह ही नई राखी को आकार दिया जाता है. इसके बाद जो राखियां तैयार हो जाती हैं, वह बाजार की राखियों को भी डिजाइन और सुंदरता में मात देती नजर आती हैं.
हर वर्ष राखियों से एक लाख रुपए का व्यापार
इस सामाजिक संस्था में बीते दो दशकों से जो राखियां बन रही हैं, प्रतिवर्ष उन्हें बेचकर दृष्टिहीन बालिकाओं के लिए हर साल करीब एक लाख रुपए जुटा लिए जाते थे, हालांकि इस बार कोरोना के संक्रमण के बाद स्कूल अब भी नहीं खोल सके हैं, इसलिए रक्षाबंधन के पहले स्कूलों में लगने वाले कार्निवाल और स्टॉल नहीं लग पा रहे हैं. जिसके चलते इस बार संस्था के दानदाताओं को ही ऑनलाइन सूचना के बाद राखियां बेची जा सकेंगी. इसके बाद जो राखियां शेष बचेंगी उन्हें इन छात्राओं के भाइयों को बांधने में उपयोग किया जाएगा.
पारंपरिक त्यौहार का डिजिटल जश्नः सूरत की कलाकार ने बनाई क्यूआर कोड वाली राखी