इंदौर। शहर में बुजुर्गों को शहर से बाहर फेंकने का मामला फिलहाल चर्चाओं में है. प्रशासन दावा कर रहा है कि भिक्षुकों के जीवन को सही रूप में वापस लाने के लिए कई कोशिश की जा रही हैं. इसके लिए अलग-अलग विभाग काम भी कर रहे हैं. लेकिन हकीकत कुछ और ही. इंदौर का भिक्षुक केंद्र जहां पर भिक्षुक को लाकर उन्हें समाज की मुख्यधारा में वापस लाने के प्रयास किए जाते हैं, वो खुद सुविधाओं के अभाव में हैं. यहां पर भिक्षुक को देने वाले प्रशिक्षण पूरी तरह से बंद हो चुके हैं. स्थिति यह है कि वर्तमान में भिक्षुक केंद्र में महज 4 भिक्षुक ही रह रहे हैं.
प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में सामाजिक न्याय विभाग एक भिक्षुक केंद्र का संचालन करता है. इस केंद्र की जिम्मेदारी है कि शहर में रहने वाले भिक्षुकों को केंद्र पर लाकर उन्हें समाज की मुख्य विचारधारा में वापस लाया जाए. इसके लिए कई तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम भी संचालित किए जाने की बात कही जाती है, लेकिन हकीकत में इन केंद्रों में ऐसा कुछ देखने को नहीं मिल रहा है.
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प्रिंटिंग प्रेस हुई बंद, कुटीर उद्योग के लिए नहीं है स्टॉफ
इंदौर के परदेशीपुरा इलाका स्थित सामाजिक न्याय विभाग का भिक्षुक केंद्र इन दिनों बदहाल है. यहां पर भिक्षुक को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई कार्यक्रमों के तहत प्रशिक्षण दिया जाता था, ताकि वे समाज की मुख्य विचारधारा से जुड़ सकें. शुरुआती दौर पर यहां प्रिंटिंग प्रेस चलाई जाती थी, जिसमें प्रशिक्षण देकर उन्हें पैसा भी दिया जाता था. लेकिन वर्तमान में वह बंद हो गई है. साथ ही कुटीर उद्योग से संबंधित प्रशिक्षण देने के लिए भी स्टाफ की कमी है. फिलहाल यहां पर जो भिक्षुक लाए जा रहे हैं, उन्हें लिफाफे बनाए जाने की ट्रेनिंग दी जा रही है.